Wednesday, July 21, 2021

संतान प्राप्ति में : गुण सूत्र ,वंश एवं गोत्र की भूमिका

 गुण सूत्र, गोत्र और वंश का वैज्ञानिक तथ्य 

                                          डॉ आशीष जैन शिक्षाचार्य

                                          संकाय प्रमुख, विभागाध्यक्ष                                                संस्कृत विभाग एकलव्य विश्विद्यालय                                                                    दमोह म. प्र.


#गुणसूत्र #वंश_का_वाहक

हमारे धार्मिक ग्रंथ और हमारी सनातन हिन्दू परंपरा के अनुसार पुत्र (बेटा) को कुलदीपक अथवा वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता है..... 

अर्थात.... उसे गोत्र का वाहक माना जाता है.


क्या आप जानते हैं कि.... आखिर क्यों होता है कि सिर्फ पुत्र को ही वंश का वाहक माना जाता है ????


असल में इसका कारण.... पुरुष प्रधान समाज अथवा पितृसत्तात्मक व्यवस्था नहीं .... 

बल्कि, हमारे जन्म लेने की प्रक्रिया है.


अगर हम जन्म लेने की प्रक्रिया को सूक्ष्म रूप से देखेंगे तो हम पाते हैं कि......


एक स्त्री में गुणसूत्र (Chromosomes) XX होते है.... और, पुरुष में XY होते है. 


इसका मतलब यह हुआ कि.... अगर पुत्र हुआ (जिसमें XY गुणसूत्र है)... तो, उस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आएगा क्योंकि माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही है


और.... यदि पुत्री हुई तो (xx गुणसूत्र) तो यह गुणसूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते है.


XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री


अब इस XX गुणसूत्र के जोड़े में एक X गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा X गुणसूत्र माता से आता है. 


तथा, इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है... जिसे, Crossover कहा जाता है.


जबकि... पुत्र में XY गुणसूत्र होता है.


अर्थात.... जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि.... पुत्र में Y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्योंकि माता में Y गुणसूत्र होता ही नहीं है.


और.... दोनों गुणसूत्र अ-समान होने के कारण.... इन दोनों गुणसूत्र का पूर्ण Crossover नहीं... बल्कि, केवल 5 % तक ही Crossover होता है.


और, 95 % Y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही बना रहता है.


तो, इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण Y गुणसूत्र हुआ.... क्योंकि, Y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है कि.... यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है.


बस..... इसी Y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था.


इस तरह ये बिल्कुल स्पष्ट है कि.... हमारी वैदिक गोत्र प्रणाली, गुणसूत्र पर आधारित है अथवा Y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है.


उदाहरण के लिए .... यदि किसी व्यक्ति का गोत्र शांडिल्य है तो उस व्यक्ति में विद्यमान Y गुणसूत्र शांडिल्य ऋषि से आया है....  या कहें कि शांडिल्य ऋषि उस Y गुणसूत्र के मूल हैं.


अब चूँकि....  Y गुणसूत्र स्त्रियों में नहीं होता है इसीलिए विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है.


वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई-बहन कहलाए क्योंकि उनका पूर्वज (ओरिजिन) एक ही है..... क्योंकि, एक ही गोत्र होने के कारण...

दोनों के गुणसूत्रों में समानता होगी.


आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार भी.....  यदि सामान गुणसूत्रों वाले दो व्यक्तियों में विवाह हो तो उनके संतान... आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी क्योंकि.... ऐसे दंपत्तियों की संतान में एक सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता एवं ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है.


विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात् मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं.

शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था.

यही कारण था कि शारीरिक बिषमता के कारण अग्रेज राज परिवार में आपसी विवाह बन्द हुए। 

जैसा कि हम जानते हैं कि.... पुत्री में 50% गुणसूत्र माता का और 50% पिता से आता है.


फिर, यदि पुत्री की भी पुत्री हुई तो....  वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा...

और फिर....  यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा.


इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा.


अर्थात.... एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है....और, यही है "सात जन्मों के साथ का रहस्य".


लेकिन.....  यदि संतान पुत्र है तो .... पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है...

और, यही क्रम अनवरत चलता रहता है.


जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं.... अर्थात, यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है.


इन सब में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि.... माता पिता यदि कन्यादान करते हैं तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं...


बल्कि, इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुल धात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिए. 


पुत्रियां..... आजीवन डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि उसके भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है.


शायद यही कारण है कि..... विवाह के पश्चात लड़कियों के पिता को घर को ""मायका"" ही कहा जाता है.... "'पिताका"" नहीं.


क्योंकि..... उसने अपने जन्म वाले गोत्र अर्थात पिता के गोत्र का त्याग कर दिया है....!


और चूंकि.....  कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज का दान कर मातृत्व को प्राप्त करती है... इसीलिए,  हर विवाहित स्त्री माता समान पूजनीय हो जाती है.


आश्चर्य की बात है कि.... हमारी ये परंपराएं हजारों-लाखों साल से चल रही है जिसका सीधा सा मतलब है कि हजारों लाखों साल पहले.... जब पश्चिमी देशों के लोग नंग-धड़ंग जंगलों में रह रहा करते थे और चूहा ,बिल्ली, कुत्ता वगैरह मारकर खाया करते थे....


उस समय भी हमारे पूर्वज ऋषि मुनि.... इंसानी शरीर में गुणसूत्र के विभक्तिकरण को समझ गए थे.... और, हमें गोत्र सिस्टम में बांध लिया था.


इस बातों से एक बार फिर ये स्थापित होता है कि....  

हमारा सनातन हिन्दू धर्म पूर्णतः वैज्ञानिक है....


बस, हमें ही इस बात का भान नहीं है.


असल में..... अंग्रेजों ने जो हमलोगों के मन में जो कुंठा बोई है..... उससे बाहर आकर हमें अपने पुरातन विज्ञान को फिर से समझकर उसे अपनी नई पीढियों को बताने और समझाने की जरूरत है.



नोट : मैं पुत्र और पुत्री अथवा स्त्री और पुरुष में कोई विभेद नहीं करता और मैं उनके बराबर के अधिकार का पुरजोर समर्थन करता हूँ.


लेख का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ.... गोत्र परंपरा एवं सात जन्मों के रहस्य को समझाना मात्र है।

Monday, July 19, 2021

वैदिक ऋषि एवं उनसे संबंधित ज्ञान आविष्कार

 कौन से ऋषि का क्या है महत्व-

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       महत्वपूर्ण जानकारी

अंगिरा ऋषि👉 ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अंगिरा ब्रह्मा के पुत्र थे। उनके पुत्र बृहस्पति देवताओं के गुरु थे। ऋग्वेद के अनुसार, ऋषि अंगिरा ने सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न की थी।


विश्वामित्र ऋषि👉 गायत्री मंत्र का ज्ञान देने वाले विश्वामित्र वेदमंत्रों के सर्वप्रथम द्रष्टा माने जाते हैं। आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत इनके पुत्र थे। विश्वामित्र की परंपरा पर चलने वाले ऋषियों ने उनके नाम को धारण किया। यह परंपरा अन्य ऋषियों के साथ भी चलती रही।


वशिष्ठ ऋषि👉 ऋग्वेद के मंत्रद्रष्टा और गायत्री मंत्र के महान साधक वशिष्ठ सप्तऋषियों में से एक थे। उनकी पत्नी अरुंधती वैदिक कर्मो में उनकी सहभागी थीं।


कश्यप ऋषि👉 मारीच ऋषि के पुत्र और आर्य नरेश दक्ष की १३ कन्याओं के पुत्र थे। स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार, इनसे देव, असुर और नागों की उत्पत्ति हुई।


जमदग्नि ऋषि👉 भृगुपुत्र यमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के १६ मंत्रों की रचना की है। केदारखंड के अनुसार, वे आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के भी विद्वान थे।


अत्रि ऋषि👉 सप्तर्षियों में एक ऋषि अत्रि ऋग्वेद के पांचवें मंडल के अधिकांश सूत्रों के ऋषि थे। वे चंद्रवंश के प्रवर्तक थे। महर्षि अत्रि आयुर्वेद के आचार्य भी थे।


अपाला ऋषि👉 अत्रि एवं अनुसुइया के द्वारा अपाला एवं पुनर्वसु का जन्म हुआ। अपाला द्वारा ऋग्वेद के सूक्त की रचना की गई। पुनर्वसु भी आयुर्वेद के प्रसिद्ध आचार्य हुए।


नर और नारायण ऋषि👉  ऋग्वेद के मंत्र द्रष्टा ये ऋषि धर्म और मातामूर्ति देवी के पुत्र थे। नर और नारायण दोनों भागवत धर्म तथा नारायण धर्म के मूल प्रवर्तक थे।


पराशर ऋषि👉 ऋषि वशिष्ठ के पुत्र पराशर कहलाए, जो पिता के साथ हिमालय में वेदमंत्रों के द्रष्टा बने। ये महर्षि व्यास के पिता थे।


भारद्वाज ऋषि👉 बृहस्पति के पुत्र भारद्वाज ने 'यंत्र सर्वस्व' नामक ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें विमानों के निर्माण, प्रयोग एवं संचालन के संबंध में विस्तारपूर्वक वर्णन है। ये आयुर्वेद के ऋषि थे तथा धन्वंतरि इनके शिष्य थे।


आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के आधार पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। प्रत्येक मनवंतर में सात सात ऋषि हुए हैं। यहां प्रस्तुत है वैवस्तवत मनु के काल में जन्में सात महान ‍ऋषियों का संक्षिप्त परिचय।


वेदों के रचयिता ऋषि 👉 ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब बीस हजार हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं। बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है। पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही। ये कुल परंपरा ऋग्वेद के सूक्त दस मंडलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मंडल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंशमंडल कहते हैं क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं। 


वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है वे नाम क्रमश: इस प्रकार है:- १.वशिष्ठ, २.विश्वामित्र, ३.कण्व, ४.भारद्वाज, ५.अत्रि, ६.वामदेव और ७.शौनक। 


पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है। विष्णु पुराण अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है :- 


वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत।

विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।


 अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।


इसके अलावा पुराणों की अन्य नामावली इस प्रकार है:- ये क्रमशः केतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ट तथा मारीचि है।


महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियां मिलती हैं। एक नामावली में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली में पांच नाम बदल जाते हैं। कश्यप और वशिष्ठ वहीं रहते हैं पर बाकी के बदले मरीचि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु नाम आ जाते हैं। कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है तो कहीं कश्यप और कण्व को पर्यायवाची माना गया है। यहां प्रस्तुत है वैदिक नामावली अनुसार सप्तऋषियों का परिचय।


१. वशिष्ठ👉 राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता। ये दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया।


२. विश्वामित्र👉 ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है। विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं।


माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहां शांतिकुंज हैं उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है। 


३. कण्व👉 माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।


४. भारद्वाज👉 वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि राम के पूर्व हुए थे, लेकिन एक उल्लेख अनुसार उनकी लंबी आयु का पता चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता-द्वापर का सन्धिकाल था। माना जाता है कि भरद्वाजों में से एक भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी।


ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में १० ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं और एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' था, वह भी रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा मानी गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि हैं। इस मण्डल में भारद्वाज के ७६५ मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के २३ मन्त्र मिलते हैं। 'भारद्वाज-स्मृति' एवं 'भारद्वाज-संहिता' के रचनाकार भी ऋषि भारद्वाज ही थे। ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान-शास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।


५. अत्रि👉 ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था।


अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहां उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।


६. वामदेव👉 वामदेव ने इस देश को सामगान (अर्थात् संगीत) दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं। 


७. शौनक👉 शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि जो शुनक ऋषि के पुत्र थे। 


फिर से बताएं तो वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक- ये हैं वे सात ऋषि जिन्होंने इस देश को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ देश ने इन्हें आकाश के तारामंडल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारामंडलों पर टिक जाती है।


इसके अलावा मान्यता हैं कि अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है।

Saturday, July 10, 2021

अलसी ओषधीय गुण जाने

 अलसी के ओषधीय गुण 



 खाली पेट पिसी अलसी खाने के 13 फायदे | Ground flax seeds in hindi

अलसी के बीज के फायदे पुरुषों व महिलाओं के लिए – (Flax seeds) अलसी पुरुषों की सेक्स समस्या ठीक करने और औरतों में हार्मोनल बैलन्स लाने का काम करता है। अलसी का सेवन मोटापा कम करता है और बाल, स्किन, आँखें, नाखून स्वस्थ होते हैं। अलसी खाना कई रोगों में फायदेमंद है।


अलसी को तीसी, अरसी भी कहते हैं। आयुर्वेद में अलसी को ‘बाल्य’ कहा गया है मतलब जो शक्ति देता है। भारत में अलसी के औषधीय गुण का उपयोग आयुर्वेदिक उपचारों और खान-पान में पुराने समय से होता रहा है।अलसी के लड्डू खाना भी अलसी के फायदे पाने का तरीका है। 


अलसी के फायदे और कैसे खाए – Alsi seeds benefits in hindi

Contents [show]


अलसी के बीज में प्रोटीन, आयरन, कैल्सियम, विटामिन C, विटामिन E, विटामिन बी काम्प्लेक्स, जिंक, फाइबर, कॉपर, सेलेनियम, कैरोटीन, पोटैशियम, फोस्फोरस, मैगनिशियम, मैगनीस तत्व पाए जाते हैं। 


अलसी के बीज को English में Flax Seeds कहा जाता है। अलसी के बीज एंटी- बैक्टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी-वायरल होते है। इनके उपयोग से शरीर की रोगों से लड़ने की ताकत  (immunity) बढ़ती है। 


1) अलसी के फायदे पुरुषों के लिए – Benefits of Alsi seeds in hindi

– अलसी खाने से पुरुषों की कई सेक्स समस्यायें जैसे सेक्स में रूचि न होना, जल्दी उत्तेजित होना, सेक्स के दौरान नर्वसनेस, शारीरिक दुर्बलता, रक्त संचार (Blood circulation) से जुड़ी दिक्कतों से निजात मिलती है। 


– एक खास बात कि अलसी का सेवन पुरुषों में गंजापन पैदा करने वाले Enzyme को नष्ट करते हैं. अतः Baldness से बचाव के लिए पुरुष अलसी अवश्य खाएं। 


– बढ़ती हुई उम्र के पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर, ब्लैडर कैंसर होने का खतरा होता है। अलसी का सेवन करके इन कैंसर की आशंकाओं से बचा जा सकता है। पुरुषों को अलसी के फायदे का लाभ जरूर उठाना चाहिए। 


2) अलसी पोषण से जुड़ी जानकारी – Tisi seeds benefits in hindi

– अलसी के बीज Omega 3 fatty acids का बहुत अच्छा Source माने जाते हैं। डाईटिशियन और डाक्टर भी इसे खाने की सलाह देते है। अलसी खाना Omega 3 fatty acids के कैप्सूल का अच्छा विकल्प है। 


– ओमेगा-3 फ़ैटी एसिड हमारे शरीर को कई तरह से हेल्दी रखने में मदद करते हैं। ये सबसे अधिक मात्रा में समुद्री मछलियों से प्राप्त होता है लेकिन शाकाहारी लोग अलसी का सेवन करके इसके लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 


सुबह खाली पेट अलसी खाने के फायदे – Ground flax seeds in hindi

सुबह खाली पेट गर्म पानी में एक चम्मच पिसी अलसी मिलाकर पीने और रात को सोने से पहले इसी तरह अलसी लेने से शरीर डेटोक्स होता है। 


अलसी में मौजूद फाइबर व Omega 3 fatty acids शरीर में मौजूद हानिकारक चीजों को लीवर और आंतों से निकालकर शरीर से बाहर करने का काम करते हैं। अलसी द्वारा शरीर के इस Detoxification से अनावश्यक थकान, कमजोरी, सुस्ती, सूजन दूर होता है। 


3) अलसी के बीज वजन कम करे – Alsi ke beej for weight loss in hindi :

– अलसी के बीज से मोटापा कम होता है। अलसी में डाइटरी फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इस वजह से अलसी खाने पर जल्दी भूख नहीं लगती।


– अलसी का फाइबर पेट के लिए लाभदायक बैक्टीरिया को बढ़ावा देता है जिससे मेटाबोलिज्म की रेट तेज होती है, इससे ज्यादा कैलोरी बर्न होती है। यह फाइबर मल (stool) का निकास भी आसान करता है, जिससे कब्ज नहीं होता। 


– अलसी में अन्य Natural resources की तुलना में 800 गुना ज्यादा Lignans होते हैं। लिग्नास एंटी-ओक्सिडेंट की तरह काम करते हैं और शरीर में हानिकारक फ्री ऑक्सीजन रेडिकल्स को खत्म करते हैं। 


यही फ्री रेडिकल्स मेटाबोलिक रेट धीमा करके वजन बढ़ाते है और शरीर फूल जाता है। अलसी के बीज फ्री रेडिकल्स नष्ट करके मोटापे से मुक्ति दिलाते हैं। 


ground flaxseed in hindi

Flax seeds in hindi

4) अलसी के बीज के फायदे स्किन के लिए – Flax seeds benefits in hindi for skin

असली के बीज खाने से शरीर को मिलने वाले ओमेगा 3 फैटी एसिड्स स्किन के लिए लाजवाब हैं। यह बढती उम्र के असर जैसे झुर्रियों, महीन रेखाओं को दूर करता है।  यह त्वचा के कील-मुहांसों को दूर करके स्किन को नयी चमक देता है, त्वचा का कसाव बनाये रखता है। 


– हाथ-पैर के नाखून को अलसी मजबूत और चिकना बनाता है। अलसी धूप की वजह से होने वाले स्किन डैमेज से सुरक्षा प्रदान करता है और स्किन कैंसर से बचाव करता है। 


– जाड़ों में अलसी का तेल (Flaxseed oil) स्किन पर लगाने से त्वचा रूखी नहीं होती और नर्म, मुलायम बनी रहती है। 


– अलसी का तेल स्किन की खुजली, लालपन, सूजन, दाग-धब्बे दूर करके एक बढ़िया Moisturizer का काम करता है। यह स्किन समस्या Eczema, Psoriasis के उपचार में भी कारगर माना गया है। अलसी के बीज खाने से घाव भी जल्दी भरता है।



 Flaxseed कैसे खाये – Flax seeds khane ka tarika :

एक दिन में 2 टेबलस्पून (40 ग्राम) से ज्यादा अलसी के बीज का सेवन न करें। 

अलसी के साबुत बीज कई बार हमारे शरीर से पचे बिना निकल जाते हैं इसलिए इन्हें पीसकर ही इस्तेमाल करना चाहिए। 

a) 20 ग्राम (1 टेबलस्पून) अलसी पाउडर (Ground flax seeds) को सुबह खाली पेट हल्के गर्म पानी के साथ लेने से शुरुआत करें। 


b) आप इसे फल या सब्जियों के ताजे जूस, दही-छाछ में मिला सकते हैं या अपने भोजन में ऊपर से बुरक कर भी खा सकते हैं। इसे रोटी, पराठे, दलिया बनाते समय भी मिलाया जा सकता है। 


थॉयरॉइड में अलसी के फायदे –  Flaxseed benefits for thyroid in hindi


c) दो कप पानी में दो चम्मच अलसी डालकर उबालें, जब यह आधा रह जाये तो गैस बंद कर दें। पीने लायक गर्म रह जाए तो छानकर सुबह सुबह खाली पेट पी लें। ये उपाय हाइपरथाइरोइड और हाइपोथाइरोइड दोनों प्रकार के थाइरोइड की बीमारी  में फायदेमंद है। 


अलसी से बना यह ड्रिंक डायबिटीज, शुगर कण्ट्रोल करने में भी असरकारक है। इसे पीने से आर्थराइटिस, जोड़ों के दर्द, हार्ट ब्लॉकेज, पेट की दिक्कतों जैसे कब्ज, अपच, मोटापे, बाल झड़ने, स्किन की प्रॉबलम्स में भी लाभ मिलता है।


d) अलसी के बीज हल्का भून कर खाएं अथवा सलाद या दही में मिलाकर खाएं, चाहे तो जूस में मिलाकर पियें। यह जूस के स्वाद को बिना बदले उसकी पोषकता कई गुना बढ़ा देगा। 


e) साबुत अलसी लंबे समय तक खराब नहीं होती लेकिन इसका पाउडर (Ground flax seeds) हवा में मौजूद ऑक्सीजन के प्रभाव में खराब हो जाता है, इसलिए ज़रूरत के मुताबिक अलसी को ताज़ा पीसकर ही इस्तेमाल करें। इसे अधिक मात्रा में पीसकर न रखें। 


अलसी के बीज भूनकर खाना – Roasted flax seeds in hindi


f) बहुत ज्यादा सेंकने या फ्राई करने से अलसी के बीज का फायदा, औषधीय गुण नष्ट हो सकते हैं और इसका स्वाद बिगड़ सकता है। इसलिए अलसी के बीज को इतना भूनना चाहिए कि नमी निकल जाये। 


g) व्रत में अलसी के बीज खा सकते हैं क्योंकि ये कोई अनाज नहीं है। जैसे मूंगफली का सेवन भी व्रत में किया जाता है। मूंगफली भी एक बीज है। अलसी में भरपूर पोषक तत्व होते हैं जोकि व्रत में फायदेमंद भी है। 


6) अलसी के फायदे बालों के लिए –

जैसा कि आप जानते हैं अलसी Omega 3 fatty acids का बढ़िया स्रोत है। ये फैटी एसिड्स बालों की अच्छी बढ़त के लिए जरुरी है। 


– अलसी का सेवन बालों की जड़ों से लेकर सिरों तक को पोषण देता है। इससे बाल लम्बे और मजबूत होते हैं इसलिए कम टूटते-झड़ते हैं। 


नए निकलने वाले बाल भी स्वस्थ और सुंदर होते हैं। Omega 3 fatty acids सर की स्किन को भी सूखने से बचाते हैं, जिससे डैंड्रफ यानि रूसी की समस्या भी नहीं होती। 


7) महिलाओं के लिए अलसी के फायदे – Alsi seeds benefits in hindi

– जिन औरतों का पीरियड रेगुलर नहीं होता और पीरियड के दौरान तेज दर्द रहता हो, उन्हें रोजाना अलसी खाना चाहिए। अलसी स्त्रियों के प्रजनन अंगों को स्वस्थ बनाता है, जिससे पीरियड नियमित होता है। 


– गर्भवती स्त्रियों और स्तनपान कराने वाली माताओं को अलसी का सेवन संतुलित मात्रा में करना चाहिए। अलसी के बीज स्तनपान के दौरान दूध न आने की समस्या को दूर करता है। 


आज भी शहरो और कस्बों के कई परिवारों में स्तनपान कराने वाली स्त्रियों को अलसी (तीसी) के बने लड्डू और अन्य भोज्य पदार्थ दिए जाते हैं। 


ये इस बात का सबूत है कि हमारे पूर्वज अलसी के बीज का महत्व अच्छी तरह जानते थे पर हम इन्हें भुलाकर सिर्फ दवाइयां खाने में विश्वास करने लगे। 


– अलसी के बीज औरतों के हार्मोनल बैलेंस के लिए बहुत सहायक होता है क्योंकि ये बीज Lignans का बहुत अच्छा स्रोत है जोकि Phytoestrogen और Anti-Oxidant गुणों से भरपूर है। 


– अलसी में पाए जाने वाला Phytoestrogen Adaptogenic होता है। अतः ये ऐसी महिलायें जिनके शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन बहुत ज्यादा है या जरुरत से कम है, दोनों को अलसी फायदा पहुँचाता है। 


– महिलाओं में रजोनिवृत्ति (Menopause) के दौरान होने वाली समस्याओं में भी अलसी के उपयोग से राहत मिलती है। यह देखा गया है कि माइल्ड मेनोपॉज़ की समस्या में रोजाना लगभग 40 ग्राम पिसी हुई अलसी खाने से वही लाभ प्राप्त होते हैं जो हार्मोन थैरेपी से मिलते हैं। 


8) अलसी के फायदे आँखों के लिए –

अलसी में मिलने वाला ओमेगा 3 फैटी एसिड्स तत्व नेत्र विकार, आँखों में सूखापन (Dry Eyes) के उपचार में असरदार है और डॉक्टर भी इसकी सलाह देते हैं। 


Omega 3 Fatty acids आँखों में नमी बराबर बनाये रखता है, जिससे ग्लूकोमा, High eye pressure के खतरे कम होते हैं।  


9) अलसी के आयुर्वेदिक गुण – Ayurvedic benefits of flaxseed in hindi :

आयुर्वेद में अलसी को मंद गंधयुक्त, मधुर, बलकारक, पित्तनाशक, स्निग्ध, पचने में भारी, गरम, पौष्टिक, कामोद्दीपक, किंचित कफ वात-कारक, पीठ के दर्द ओर सूजन को मिटानेवाली कहा गया है. जाड़ों में अलसी खाने से शरीर गर्म रहता है। 


– अलसी वात को संतुलित करता है, इसलिए वात बढ़ने की वजह से होने वाले विकारों का उपचार करता है। 


– अलसी के तेल को Flax seed oil या linseed oil कहते हैं।  इसमें Alpha-linolenic Acid (ALA) नामक तत्व होता है जो एक प्रकार का ओमेगा-3 फ़ैटी एसिड (omega-3 fatty acid) है, जिसके कई सारे चिकित्सकीय लाभ हैं। 


10) अलसी के गुण हार्ट के मरीज और ब्लड प्रेशर के लिए – 

– हृदय की धमनियों में कोलेस्ट्रॉल के जमने से हृदय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है। इसलिए अलसी कोलेस्ट्रॉल कम करके हृदय रोग होने के खतरे को भी कम करता है। 


अलसी विटामिन B Complex, मैगनिशियम, मैगनीस तत्वों से भरपूर है जोकि LDL नामक बुरे कोलेस्ट्रोल को कम करते है।  अलसी के सेवन से कोलेस्ट्रॉल के लेवल में कमी आना देखा गया है। 


11) अलसी के बीज (Flax seeds in English) ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने, हाइपरटेंशन के रोगियों के लिए, ब्लड शुगर कंट्रोल में अत्यंत लाभदायक है। Type 1 और Type 2 Diabetes रोगियों के लिए अलसी डायबिटीज रोकने में कारगर पाया गया है। 


British Journal of Nutrition में प्रकाशित एक स्टडी में भाग लेने वाले लोगों के भोजन में 50 ग्राम अलसी 4 हफ्ते तक शामिल की गयी। नतीजा उनके रक्त में ब्लड शुगर लेवल की मात्रा 27 % तक कम हो गयी। 


12) अलसी किडनी से जुड़ी समस्याओं में भी लाभकारी है। अलसी के बीज गरम पानी में उबालकर इसके साथ एक तिहाई भाग मुलेठी का चूर्ण मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से खूनी दस्त और और मूत्र संबंधी रोगों में लाभ होता है।


13) अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक शोध में पता चला है कि अलसी में जो Poly Unsaturated fatty acids होता है, वह विशेष रूप से स्तन का कैंसर, प्रोस्टेट और कोलन कैंसर (पेट के कैंसर) से बचाव करता है। 


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अलसी के नुक्सान, अलसी किसे नहीं खाना चाहिए – Side effects of Flaxseed in hindi  :

1. अलसी खाने से कुछ लोगों को शुरुआत में कब्ज हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अलसी के बीज में फाइबर ज्यादा होता है। इसलिए अगर आप अलसी का सेवन कर रहे हो तो पानी भरपूर पियें। सही मात्रा में अलसी खाने से कब्ज दूर होती है, लेकिन ज्यादा अलसी खाने से लूज मोशंस भी हो सकता है। 


2. प्रेगनेंसी के दौरान अलसी का सेवन डॉक्टर की सलाह लेकर 1 टेबलस्पून से अधिक नहीं करना चाहिए। बच्चा होने के बाद अलसी की बनी चीजों का सेवन निश्चिंत होकर कर सकते है। 


3. अलसी खून को पतला करती है इसलिए यदि आपको Blood Pressure की समस्या हो तो इसके सेवन से पहले डॉक्टर से एक बार सलाह लें। 


4. जरुरत से ज्यादा अलसी खाने से कुछेक लोगों को एलर्जी की शिकायत हो सकती है। इसके लक्षण हैं : पेट दर्द, उलटी, सांस लेने में दिक्कत, लो ब्लड प्रेशर आदि। 


किसी भी चीज़ की अति अच्छी नहीं होती। लेख में बताई गयी अलसी के बीज (Flaxseed) की सही मात्रा खाने से अलसी के सभी फायदों का लाभ लिया जा सकता है। 


दुनिया के अनेक देशों में अलसी के बीज या Flax seeds लोकप्रिय और सेहतमंद आहार के रूप मे जाना जाता है। 


डिस्कलेमरः खानपान, किसी आयुर्वेदिक क्रिया या औषधि को अपनाने में स्वविवेक से काम लें, अति न करें। जानकार चिकित्सक से भी सलाह लें। इस वेबसाइट के सारे लेखों का उद्देश्य केवल शैक्षिक है। 


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