Tuesday, March 22, 2022

श्री रामभद्राचार्य और राम जन्म भूमि प्रमाण

 ये वही रामभद्राचार्य जी है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रामलला के पक्ष में वेद पुराण के उद्धारण के साथ गवाही दी थी।


दृश्य था उच्चतम न्यायलय का ... श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वादी के रूप में उपस्थित थे धर्मचक्रवर्ती, तुलसीपीठ के संस्थापक, पद्मविभूषण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ... जो विवादित स्थल पर श्रीराम जन्मभूमि होने के पक्ष में शास्त्रों से प्रमाण पर प्रमाण दिये जा रहे थे ...

न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति मुसलमान था ...

उसने छूटते ही चुभता सा सवाल किया, "आप लोग हर बात में वेदों से प्रमाण मांगते हैं ... तो क्या वेदों से ही प्रमाण दे सकते हैं कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में उस स्थल पर ही हुआ था?"

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी (जो प्रज्ञाचक्षु हैं) ने बिना एक पल भी गँवाए कहा , " दे सकता हूँ महोदय", ... और उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उद्धरण देना शुरू किया जिसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्यौरा देते हुए श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है ।

कोर्ट के आदेश से जैमिनीय संहिता मंगाई गई ... और उसमें जगद्गुरु जी द्वारा निर्दिष्ट संख्या को खोलकर देखा गया और समस्त विवरण सही पाए गए ... जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है ... विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर है ...

और जगद्गुरु जी के वक्तव्य ने फैसले का रुख हिन्दुओं की तरफ मोड़ दिया ...

मुसलमान जज ने स्वीकार किया , " आज मैंने भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार देखा ... एक व्यक्ति जो भौतिक आँखों से रहित है, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल वाङ्मय से उद्धरण दिये जा रहा था ? यह ईश्वरीय शक्ति नहीं तो और क्या है ?"

"सिर्फ दो माह की उम्र में आंख की रोशनी चली गई, आज 22 भाषाएं आती हैं, 80 ग्रंथों की रचना कर चुके हैं


सनातन धर्म को दुनिया का सबसे पुराना धर्म कहा जाता है. वेदों और पुराणों के मुताबिक सनातन धर्म तब से है जब ये सृष्टि ईश्वर ने बनाई. जिसे बाद में साधू और संन्यासियों ने आगे बढ़ाया. ऐसे ही आठवीं सदी में शंकराचार्य आए, जिन्होंने सनातन धर्म को आगे बढ़ाने में मदद की.

पद्मविभूषण रामभद्राचार्यजी एक ऐसे संन्यासी के हैं जो अपनी दिव्यांगता को हराकर जगद्गुरू बने.


1. जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं. उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है, उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था.


2. रामभद्राचार्य एक प्रख्यात विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिन्दू धर्मगुरु हैं.


3. वे रामानन्द सम्प्रदाय के वर्तमान चार जगद्गुरु रामानन्दाचार्यों में से एक हैं और इस पद पर साल 1988 से प्रतिष्ठित हैं.


4.  रामभद्राचार्य चित्रकूट में स्थित संत तुलसीदास के नाम पर स्थापित तुलसी पीठ नामक धार्मिक और सामाजिक सेवा स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक हैं और आजीवन कुलाधिपति हैं.


5. जगद्गुरु रामभद्राचार्य जब सिर्फ दो माह के थे तभी उनके आंखों की रोशनी चली गई थी.


6. वे बहुभाषाविद् हैं और 22 भाषाएं  जैसे  संस्कृत, हिन्दी, अवधी, मैथिली सहित कई भाषाओं में कवि और रचनाकार हैं.


7. उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों और ग्रंथों की रचना की है, जिनमें चार महाकाव्य (दो संस्कृत और दो हिन्दी में ) हैं. उन्हें तुलसीदास पर भारत के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में गिना जाता है.


8. चिकित्सक ने गिरिधर की आँखों में रोहे के दानों को फोड़ने के लिए गरम द्रव्य डाला, परन्तु रक्तस्राव के कारण गिरिधर के दोनों नेत्रों की रोशनी  चली गयी.


9. वे न तो पढ़ सकते हैं और न लिख सकते हैं और न ही ब्रेल लिपि का प्रयोग करते हैं. वे केवल सुनकर सीखते हैं और बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं.


10. साल 2015 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया."

कश्मीरी पंडितों का इतिहास

 #कश्मीरी_पंडितों_का_इतिहास 🚩🚩

#काबुल_का_पहला_हिंदू_सूबेदार_सुखजीवन_महाजन....✍️ 


मेरे पास एक किताब है जिसका नाम "दिल्ली की रोमांचक सत्यकथाएं" है। इसके लेखक विश्वनाथ जी है। इस किताब के पेज नम्बर 138 से 142 तक कश्मीरी पंडितों के उत्थान और पतन पर बहुत-कुछ लिखा है।

इसी क़िताब से लफ्ज़ दर लफ्ज़ काम के लायक जानकारी आपकी ख़िदमत में पेश कर रहा हूँ।


कश्मीरी पंडित/ब्राह्मणों को लेकर आजकल अखबार की सुर्खियों से लेकर सोशल मीडया पर अनगिनत पोस्ट चल रही है। अब तो कश्मीर फाईल्स नामक चर्चित फिल्म भी बाज़ार में आ गई है। ऐसे में आपके मन में एक सवाल जरूर उठ रहा होगा कि आखिर ये कश्मीरी पंडित है कौन? आपने शायद ही गुजराती या राजस्थानी पंडित सुना होगा? 


वैसे तो कश्मीर में पंडितों यानि ब्राह्मणों का इतिहास बौध्द काल से लेकर 16वी सदी तक छुटपुट मिलता रहता है लेकिन मैं यहाँ दस्तावेजी सुबूत पर मुख्तसर बात करूँगा।


आइये चलते है 265 साल पहले।

मोहम्मद शाह अब्दाली के जमाने की बात है।

पंजाब के सियालकोट में एक महाजन परिवार रहता था ।अफगान और हिंदुस्तान की जंगों में उस परिवार में सिर्फ सुखजीवन नाम का लड़का ही बच पाया था। उसके माता-पिता बचपन में ही फ़ौत हो गए थे। लड़का पढ़ने-लिखने में होशियार और फारसी का तो पंडित ही था।


जब सियालकोट में उसकी गुज़र-बसर नहीं हुई ।

थोड़ी मूंछे फूटी तो वो कलम-दवात लेकर पेशावर चला आया। पेशावर में वो अब्दाली की कचहरी के सामने फ़टी-सी दरी बिछाकर अपनी कलम-दवात लेकर बैठ गया। दरबार में आने-जाने वालों की पढ़ाई-लिखाई का काम करने लगा। उसकी फारसी की लिखावट मोतियों के समान और लफ़्ज़ों को लिखने का अंदाज़ सबसे निराला था । उसकी लिखावट देखकर बड़े-बड़े फारसीदाँ ताज्जुब में पड़ जाते थे। लिहाज़ा सुखजीवन महाजन आने-जाने वाले दरबारियों की नज़र में चढ़ गया।


एक दिन की बात है।

अफगान का शासक मोहम्मद शाह अब्दाली अपनी पेशावर की कचहरी में एक जरुरी दस्तावेज़ से सिर खपा रहा था। घसीट में लिखी फारसी उसके पल्ले नहीं पड़ रही थी। अब्दाली मन ही मन लिखने वाले की सातों पीढ़ियों को कोस रहा था। फिर वज़ीर ने भी अपना दिमाग लगाया। कुछ हाथ ना लगा। हारकर वजीर ने अब्दाली का ध्यान सुखजीवन महाजन की जानिब दिलाया।


सुखजीवन हाज़िर हुआ। उसने बातों-बातों में दस्तावेज़ बांच दिया। अब्दाली इस हिंदू नौजवान की क़ाबलियत से बहुत मुतास्सिर हुआ।

तुमने इतनी अच्छी फ़ारसी कहाँ सीखी? 

अब्दाली ने उत्सुकतावश पूछा


"हुज़ूर बहुत कुछ मदरसे के मौलवी से , दुकान में बाप से फिर दुनिया के धक्के खाकर और बाक़ी सुने घर में रखी किताबों को पढ़कर"


'वल्लाह तुम इतने गरीब और क़ाबिल शख्स हो। हमारी खुशकिस्मती है जो तुम जैसा क़ाबिल हमारे इलाके में रहता है। हम तुम्हें ऊंचा ओहदा देंगे, ऊंचे खानदान में शादी कराएंगे।'


इस नाचीज पर हुज़ूर की मेहरबानी है लेकिन मैं अपना मजहब नहीं छोड़ सकता। 


अब्दाली ने हँसकर कहा- 'ओह नहीं' हम तुम्हे मजहब बदलने को नहीं कह रहे। अब्दाली मज़हब के चक्कर में पड़कर क़ाबलियत की तौहीन नहीं करता। मेरे दरबार में दूसरे भी हिंदू मुलाज़िम हैं। तुम भी उन्ही की तरह रहना।


सुखजीवन महाजन खुश होकर ताज़ीम में झुक गया।

अब्दाली आज बहुत खुश था। उसने सुखजीवन से धर्म, राजनीति और साहित्य पर खूब चर्चा की । उसकी क़ाबलियत को पहचानकर उसे काबुल का सूबेदार बना दिया। मरहबा 🌷


सुखजीवन पहला हिंदू था जो काबुल का सूबेदार बना।

वो भी अब्दाली के ज़माने में। जिसे कट्टरपंथी माना जाता है। सुखजीवन ने काबुल की सूबेदारी ईमानदारी से सम्भाली।


कुछ दिनों बाद

अब्दाली ने सन 1758 में दिल्ली से कश्मीर छीन लिया।

वहां मैनेजमेंट की जरूरत पेश आई। इस नए जीते हुए परदेस में बहुत ही क़ाबिल और सुलझे हुए सूबेदार की जरूरत थी लिहाज़ा अब्दाली ने सुखजीवन महाजन को याद किया।


कश्मीर का सूबेदार बनते ही सुखजीवन अपनी मदद के लिए बहुत-से क़ाबिल ब्राह्मणों (पंडितों) को लेकर कश्मीर चला गया। ये 1758 की बात है। यही से कश्मीरी पंडितों की कहानी शुरू होती है।


अब्दाली फिर पंजाबियों और मराठाओं से लड़ने में मशरूफ़ हो गया। अब्दाली मराठाओं से पानीपत की ऐतिहासिक जंग जीता। ऐसे में चार साल बाद 1762 में मौका मिलते ही सुखजीवन ने बगावत कर दी और खुद को कश्मीर का स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया। 


उसने कश्मीर से सारे अफगान पठानों को मार भगाया। सुखजीवन को अपनी स्वतन्त्रता घोषित करने के सम्बंध में कश्मीर के सभी ब्राह्मणों और मुसलमानों का समर्थन हासिल था क्योंकि कश्मीरी हिन्दू-मुसलमान हिंदुस्तान के नजदीक रहना पसंद करते थे। सुखजीवन महाजन भी पंजाब सियालकोट से था इसलिए कश्मीरी उसे अपना हिंदुस्तानी भाई मानते थे।


सुखजीवन महाजन की हरकत का पता लगते ही

अब्दाली ने अपने जाँबाज सेनापति नूरुद्दीन को कश्मीर हमला करने भेजा। सुखजीवन अब्दाली की सेना के आगे टिक नहीं सका और जंजीरों में जकड़कर अब्दाली के सामने हाज़िर किया गया।


भरे दरबार में अब्दाली ने नमकहरामी करने वाले सुखजीवन को खूब खरीखोटी सुनाई। दोनों में गर्मागर्म बहस हुई। सुखजीवन की नमकहरामी से अब्दाली नाराज और ग़मज़दा हुआ।


फिर अब्दाली का इशारा पाते ही 2 अफगानी जल्लाद सुखजीवन की छाती पर सवार हो गए और उसकी दोनों आंखें निकालकर उसके ज़िस्म के टुकड़े-टुकड़े कर दिए


जिन पंडितों /ब्राह्मणों ने सुखजीवन का साथ देकर अब्दाली से बगावत की थी। अब्दाली ने उन पंडितों से चिढ़कर उनका क़त्ल करवा दिया। इस हादसे से अब्दाली को कश्मीरी पंडितों से चिढ़ हो गई। कश्मीर में तब तक कुछ हज़ार ही पंडित बच पाए थे बाकी जातियाँ तो इस्लाम में घुल-मिल गई थी। कश्मीर में पंडित असुरक्षित महसूस करने लगे। कश्मीर से उनका पलायन होने लगा।


अब्दाली ने कश्मीर में ब्राह्मणों के खिलाफ जो जेहाद छेड़ा उसके नतीजे में कश्मीर घाटी में हिंदू आबादी गायब-सी हो गई। औसत दर 10 से 5 फ़ीसदी हो गई। जब तक कश्मीर अफगानों के हाथ में बना रहा यही हालात रहे।


बरसों बाद अब्दाली के पोते शाह शुजा को जब कश्मीर में कैद कर लिया गया तब उनकी बेग़म ने पंजाब के शेर महाराजा रणजीत सिंह को कोहिनूर का लालच दिया कि मेरे शौहर को आज़ाद करा दो मैं आपको बेशक़ीमती कोहिनूर तोहफ़े में दूँगी, 


पंजाब के शेर के हाथ सुनहरी मौका लगा।


कोहिनूर और कश्मीर दोनों रणजीत सिंह की किस्मत में लिखे थे। लिहाज़ा कश्मीर वापस हिंदुस्तान के हिस्से में आ गया और बेशक़ीमती कोहिनूर महाराज रणजीत सिंह की झोली में।


अब कश्मीर फिर हिंदुस्तान में था।

कश्मीरी पंडितों ने दौबारा चैन की सांस ली।



Monday, March 21, 2022

वैदिक ज्ञान

 1-अष्टाध्यायी               पाणिनी

2-रामायण                   वाल्मीकि

3-महाभारत                 वेदव्यास

4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य

5-महाभाष्य                  पतंजलि

6-सत्सहसारिका सूत्र     नागार्जुन

7-बुद्धचरित                  अश्वघोष

8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष

9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र

10- स्वप्नवासवदत्ता        भास

11-कामसूत्र               वात्स्यायन

12-कुमारसंभवम्        कालिदास

13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  

14-विक्रमोउर्वशियां     कालिदास

15-मेघदूत                 कालिदास

16-रघुवंशम्               कालिदास

17-मालविकाग्निमित्रम् कालिदास

18-नाट्यशास्त्र             भरतमुनि

19-देवीचंद्रगुप्तम       विशाखदत्त

20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक

21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट

22-वृहतसिंता             बरामिहिर

23-पंचतंत्र।               विष्णु शर्मा

24-कथासरित्सागर        सोमदेव

25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु

26-मुद्राराक्षस           विशाखदत्त

27-रावणवध।              भटिट

28-किरातार्जुनीयम्       भारवि

29-दशकुमारचरितम्     दंडी

30-हर्षचरित                वाणभट्ट

31-कादंबरी                वाणभट्ट

32-वासवदत्ता             सुबंधु

33-नागानंद                हर्षवधन

34-रत्नावली               हर्षवर्धन

35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन

36-मालतीमाधव         भवभूति

37-पृथ्वीराज विजय     जयानक

38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर

39-काव्यमीमांसा        राजशेखर

40-नवसहसांक चरित   पदम्गुप्त

41-शब्दानुशासन         राजभोज

42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र

43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष

44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण

45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र

46-गीतगोविन्द            जयदेव

47-पृथ्वीराजरासो     चंदरवरदाई

48-राजतरंगिणी           कल्हण

49-रासमाला               सोमेश्वर

50-शिशुपाल वध          माघ

51-गौडवाहो                वाकपति

52-रामचरित        सन्धयाकरनंदी

53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र


वेद-ज्ञान:-


प्र.1-  वेद किसे कहते है ?

उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।


प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने दिया।


प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।


प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?

उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।


प्र.5-  वेद कितने है ?

उत्तर- चार ।                                                  

1-ऋग्वेद 

2-यजुर्वेद  

3-सामवेद

4-अथर्ववेद


प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।

        वेद              ब्राह्मण

1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय

2 - यजुर्वेद      -     शतपथ

3 - सामवेद     -    तांड्य

4 - अथर्ववेद   -   गोपथ


प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।

उत्तर -  चार।

      वेद                     उपवेद

    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद

    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद

    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद

    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद


प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।

उत्तर -  छः ।

1 - शिक्षा

2 - कल्प

3 - निरूक्त

4 - व्याकरण

5 - छंद

6 - ज्योतिष


प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?

उत्तर- चार ऋषियों को।

         वेद                ऋषि

1- ऋग्वेद         -      अग्नि

2 - यजुर्वेद       -       वायु

3 - सामवेद      -      आदित्य

4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा


प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?

उत्तर- समाधि की अवस्था में।


प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?

उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।


प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?

उत्तर-   चार ।

        ऋषि        विषय

1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान

2-  यजुर्वेद    -    कर्म

3-  सामवे     -    उपासना

4-  अथर्ववेद -    विज्ञान


प्र.13-  वेदों में।


ऋग्वेद में।

1-  मंडल      -  10

2 - अष्टक     -   08

3 - सूक्त        -  1028

4 - अनुवाक  -   85 

5 - ऋचाएं     -  10589


यजुर्वेद में।

1- अध्याय    -  40

2- मंत्र           - 1975


सामवेद में।

1-  आरचिक   -  06

2 - अध्याय     -   06

3-  ऋचाएं       -  1875


अथर्ववेद में।

1- कांड      -    20

2- सूक्त      -   731

3 - मंत्र       -   5977

          

प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।


प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?

उत्तर-  बिलकुल है,।


प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?

उत्तर-  नहीं।


(शेष भाग)


प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

उत्तर-  ऋग्वेद।


प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 


प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?

उत्तर- 

1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।

2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।

3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।

4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।

5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।

6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।


प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?

उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।


प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?

उत्तर-  केवल ग्यारह।


प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?

उत्तर-  

01-ईश ( ईशावास्य )  

02-केन  

03-कठ  

04-प्रश्न  

05-मुंडक  

06-मांडू  

07-ऐतरेय  

08-तैत्तिरीय 

09-छांदोग्य 

10-वृहदारण्यक 

11-श्वेताश्वतर ।


प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?

उत्तर- वेदों से।

प्र.24- चार वर्ण।

उत्तर- 

1- ब्राह्मण

2- क्षत्रिय

3- वैश्य

4- शूद्र


प्र.25- चार युग।

1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।

2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।

3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।

4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।

कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।

4,27024 वर्षों का भोग होना है। 


पंच महायज्ञ

       1- ब्रह्मयज्ञ   

       2- देवयज्ञ

       3- पितृयज्ञ

       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ

       5- अतिथियज्ञ

   

स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।

नरक  -  जहाँ दुःख है।.


*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!


भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।


*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।


*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।


*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।


*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।


*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।


*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।


*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 


*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।


*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।


*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।


*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।


*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

 

(शेष भाग)


*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।


*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।


*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।


*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।


रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।


तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।


जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।


रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।


*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।


*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।


*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।


*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।


*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।


*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।


*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।


(शेष भाग)


*🔱24. शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।


*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।


*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।


*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।


*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।


*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।


*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।


*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।


 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।


*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।


*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।


(शेष भाग)


*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।


*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,।।

                

Wednesday, March 16, 2022

सामाजिक पतन के समसामयिक कारण :एक चिंतन

 *समाजिक पतन के समसामयिक कारण: एक चिन्तन*                                       ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★   

डॉ. आशीष कुमार जैन ‘शिक्षाचार्य’’         अध्यक्ष  संस्कृत विभाग, एकलव्य विश्वविद्यालय ,दमोह                ●●●●●●◆◆◆>●●●●●●●●●

*लेख का उद्देश्य सामाजिक एकता   है , विरोध नहीं ।*◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ यह लेख आज से दो वर्ष पूर्व लिखा था । आज मुझे अध्ययन के मध्य मिल गया। जिसे आप सभी के सामने पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ । 


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका विकास समाज में रहकर ही होता है। सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक उन्नति के लिए वह समाज में आपसी संबंधों को व्यक्ति, परिवार, समूह और समुदाय से अपनी एवं परिवार की मनोसामाजिक, आर्थिक,सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आदि आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव व्यवहार के द्वारा मानवीय सम्बन्धों को स्थापित कर उसमें संतुष्टि का अनुभव करता है। यही वास्तविक उन्नति है जो समाज को सामाजिक पतन होने से बचाती है ।

समाज एक वृक्ष की भांति होता है जिसकी सभी शाखाएं समान रूप से वृद्धि को प्राप्त होती हैं। समुचित विकास जिसका मूल उद्देश्य होता है परंतु यह तभी सम्भव है जब उस वृक्ष का यथायोग्य ध्यान रखा जाए अन्यथा वह वृक्ष अपनी ही शाखाओं -प्रशाखाओं में उलझकर स्वयं का अस्तित्व समाप्त कर लेता है ।

आज वर्तमान में हम सभी यही देख रहे हैं कि -हम स्वयं का समुचित विकास तो चाहते हैं परंतु समाज का समुचित विकास नहीं । समाज के समुचित विकास को छोड़कर स्वयं के विकास में संलग्न हो गए हैं । हम वृक्ष की एक शाखा को सिंचित कर रहे हैं उसके जड़ मूल को नहीं। जो हमारे सामाजिक पतन में निमित्त बन रहा है ।

इस लेख के माध्यम से मैंने अभी तक सामाजिक क्षेत्र में रहकर जो सामाजिक अनुभव प्राप्त किये उन्हें आपके समक्ष प्रत्यर्पित करने का प्रयास कर रहा हूँ। जिन समसामयिक कारणों से सामाजिक पतन हो रहा है उनको बताने का उपक्रम कर रहा हूँ। जिन पर विचार और मन्थन की आवश्यकता है। मैं केवल दस प्रमुख कारणों का उल्लेख कर रहा हूं । जो निम्न हैं -

*1 स्वयं की श्रेष्ठता*


स्वयं की श्रेष्ठता-आज समाज के पतन का मुख्य कारण सर्व समुदाय अपने आप को एक दूसरे को श्रेष्ठ प्रमाणित करने में लगा हुआ है । ज्ञान, पद, परिवार, जीवन शैली आदि अनेक प्रकार के अहंकार को जन्म देता है और सामाजिक पतन में प्रबल कारण बनता है ।

 *2 वैयक्तिक प्रतिस्पर्धा-* 

सामाजिक दृष्टि से प्रतिस्पर्धा एक असहयोगी अथवा व्यक्तियों और समूहों, संस्थाओं को एक दूसरे से अलग -थलग करने की सामाजिक प्रकिया है। प्रतिस्पर्था अवैयक्तिक होना चाहिए जो ईष्या में कारण ना बने । सीमित वस्तु और अधिकारों को प्राप्त करने के लिए एक दूसरे से आगे निकल जाने किस प्रयत्न होता है। जिसमें द्वेष- ईष्या प्रतिशोध की भावना उत्पन्न होती हैं। जो समाज का नैतिक पतन कराती है।

*3. संघर्ष-*

 स्वयं की श्रेष्ठता, वैयक्तिक स्पर्धा से भी बढ़कर सामाजिक पतन करने का साक्षात कारण एवं समाज की असहयोगी प्रक्रिया का एक चर्म रूप है संघर्ष । इस प्रक्रिया में स्वयं के हित लाभ के लिये सामाजिक दबाव, बल प्रयोग अथवा उत्पीड़न के द्वारा किसी सामाजिक संस्था, समूहों, व्यक्ति के अधिकारों का हनन अपने लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हिंसात्मक प्रयोग डराकर, धमकाकर, किया जाता है। आज वर्तमान में हम इनसे भली भांति


*4. सामाजिक अनियंत्रण -*

सभ्य समाज का निर्माण सामाजिक संबंधों तथा सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था से होता है। दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं । सामाजिक अनियंत्रण के कारण आज समाज में व्यक्ति तथा समूह अपनी शक्ति के द्वारा दूसरे पर अधिकार करने के लिए एक-दूसरे से सतत संघर्ष में संलग्न हैं। व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रण करने के लिए धार्मिक विश्वासों की अहम भूमिका है। पर धर्म के जानकार उनकी अज्ञानता का लाभ उठाकर अपने कार्यों को करने में लिप्त हैं। वे ही संस्था के नियम बनाते हैं वे ही स्वयं उन्हें तोड़ते हैं। है ना दोहरा चरित्र


*5. असहयोग-*

अप्रत्यक्ष विरोध का नाम असहयोग है जो अनिश्चय की दशा में रहता है । जब हम किसी व्यक्ति,समूह,संस्था विशेष को संदेह की दृष्टि से देखने लगे जाते हैं तब उसके प्रति अप्रत्यक्ष विरोध असहयोग की भावना पैदा होती है। जो समाज के पतन में कारण बनता है ।

*6 बहु-संस्थावाद -*

आज हर समाज में संस्थावाद का बोल-वाला है। जो अपनी अपनी संस्थाओं के विकास में लगे हैं जिस कारण से वे अन्य संस्थाओं एवं उनके सदस्यों को अपना प्रतिद्वन्दी भी समझ कर उन्हें संदेह की दृष्टि से देखने लगे हैं। निजी लाभ के कारण आरोप-प्रत्यारोपों का खेल खेला जाने लगा है। जिस कारण से समाज का पतन होने में यह भी एक कारण उभर कर सामने आया है।

*7. जातिवाद-*

हम भले ही अपने आपको सभ्य कहने लगे गए हों पर आज भी समाज से जातिवाद का अभिकरण आज भी अस्तित्व में है। मैंने समाज अच्छे से अच्छे धर्मोपदेशकों जो गृह त्याग करके समाज को अपना निर्देशक बतलाते हैं उनके द्वारा ही समाज में ऊंच नीच का जातिवाद वाला जहर भितर घाती तरीके से फेलाते हुए देखा है। जो सबके सामने मंच, पर माइक पर हमें राग-द्वेष त्याग का उपदेश देते हैं वे ही उसको नहीं छोड़ पाये ।

*8. परिवारवाद -*

 आज समाज के पतन का एक कारण परिवार वाद भी है। जिस कारण से सामाजिक संस्थाओं,ट्रस्ट, समितियों में पीढ़ी दर पीढ़ी स्वयं के परिवार के सदस्यों का मनोनयन, सामाजिक दबाव से चयन एवं साम-दाम-दंड भेदन प्रतिचयन एक आप बात और परंपरा सी हो गई है। जिस कारण से समाज में शक्ति का वितरण सामाजिक न्याय के अनुसार नहीं हो पाता है और पारदर्शीता समाप्ति की ओर चली गई है जिससे सामाजिक पतन होना सुनिश्चित है।


*9. हठधर्मिता-*

समाज में स्वयं को स्वंयभू,संप्रभु,स्वयं को सर्वोपरि ज्ञानी, गुरु भक्त, प्रभु भक्त मानने वालों की कमी नहीं रही है और उन्हें मान्यता देने वाले अल्पज्ञानी, भावुक भक्तों की की भी कमी नहीं रही है। आयोजनों की सफलता, गुरू के नाम पर स्वयं की उदरपूर्ति उद्देश्यपूर्ति आदि अनेक प्रकल्पों की पूर्णता के कारण उनमें हठधर्मिता का विकास हुआ है। जो समाज एवं स्वयं के लिए घातक सिद्ध होता है। इसी हठ धर्मिता के कारण वे मनमाने तरीके से जनाधार को जनादेश में बदलने मेें सफल होकर स्वयं के  मत की स्थापना, स्वयं की पूजा कराने में सफल हो रहे हैं,जो धर्म, देश और  समाज के पतन का कारण है।


*10. चरित्रहीन संचालकत्व-*

 छिद्रान्वेषी, चरित्रहीन, छली कपटी लोगों के हाथ में समाज का संचालन समाज के पतन का कारण है। जिन लोगों ने शासन-प्रशासन,सामाजिक संस्थाओं के धन, सामग्री का उपयोग स्वयं के लिए किया, गबन किया, भ्रस्टाचार किया आज उन लोगों के हाथों में धार्मिकता का दिखावा करते हुए समाज का संचालन करने का भार दिया जाना । उन्हें हर बार अनदेखा करना समाज के पतन का समसामयिक कारण हैं।


निदेशक -संस्कृत-प्राकृत तथा प्राच्य विद्या अनुसंधान केन्द्र ,दमोह

गाय के गोबर का महत्व

 आयुर्वेद ग्रंथों  में हमारे ऋषि मुनियों ने पहले ही बता दिया गया  था कि   *धोवन पानी पीने का वैज्ञानिक तथ्य और आज की आवश्यकता* वायुमण्डल में...