Saturday, January 16, 2021

राम, अयोध्या और जैन धर्म का अनादि सम्बन्ध

 *श्री राम ,अयोध्या और जैन धर्म का अनादि सम्बन्ध: एक चिंतन*


*डॉ आशीष जैन शिक्षाचार्य*

*संकायाध्यक्ष- कला एवं मानविकी संकाय*

*विभागाध्यक्ष-संस्कृत विभाग, एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह मध्य प्रदेश*

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*नमः इक्ष्वाकुवंशाय, सूर्यवंशाय जन्मने ।*

*मर्यादारूप रामाय, विश्वज्ञानात्मने नमः ।।*

भगवान वृषभ देव के इक्ष्वाकु वंश के लिए नमस्कार हो , सूर्यवंश में उत्पन्न मर्यादा रूप राम  और  उनके वैश्विक ज्ञान के लिए  नमस्कार हो ।



राम शब्द नहीं हैं ,राम एक व्यक्तित्व हैं पर समझने के लिए राम शब्द की व्याख्या शास्त्रों में इस प्रकार प्राप्त होती है - राम शब्द संस्कृत की *रम् धातु और  घञ् प्रत्यय  के संयोग से निष्पन्न होता है ।रम् धातु का अर्थ रमण -निवास -विहार करने में होता है । वे प्राणी मात्र के हृदय में रमण निवास करते हैं ।


 रमते कणे-कणे  इति रामः ।

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 जैन धर्म में राम की व्याख्या 


रमन्ते योगिनः यस्मिन् स: रामः ।


जिनमें योगी जन रमते हैं । वह राम हैं । वे केवल सीता  के ही राम नहीं , वे केवल दशरथ के ही राम नहीं , वे केवल अयोध्या के ही राम नहीं हैं ,वे केवल  पारिवारिक सम्बन्धों में बंधे राम   नहीं हैं वे तो प्रत्येक आत्मा में रमने वाले राम हैं ।  यह व्यापक अर्थ  जैन धर्म के राम है ।


राम का व्यक्तित्व  जैन पुराण के अनुसार 

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जैन बाल्मीकि रविषेणाचार्य विरचित पदमपुराण  नामक ग्रन्थ में श्री राम को आठवां बलभद्र , उसी जन्म से निर्वाण पद प्राप्त करने वाले तदभव मोक्षगामी जीव  स्वीकार किया गया है । जिसमें श्री राम के सम्पूर्ण चरित्र को  मर्यादा , श्रेष्ठ पुत्र-पिता-पिता -राजा  एवं ज्ञान, वैराग्य तथा अध्यात्म का प्रतीक माना है । 


जैन बीजाक्षर विज्ञान के अनुसार राम शब्द का अर्थ -र +अ+म=  राम

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र=

 अग्निबीज है, जो शुभाशुभ कर्मों को जलाकर समाप्त कर  स्वर्ग-नरक-पशुगति के फल का अभाव करने में सक्षम हैं, वे राम हैं ।


अ-= सूर्य बीज ,भानु बीज है । जो मोहरूपी अंधकार को दूर कर अनश्वर शांति देने में सक्षम हैं , वे राम हैं ।


म= चंदबीज है, जो अमृत से परिपूर्ण अखंड चैतन्य आत्मा के ममत्व भावना को दूर करने में मर्यादा संयम में बांधने की क्षमता रखते हैं , वे राम हैं  ।

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अयोध्या  के नाम - अवध, कौशल  अपरजिता, साकेत  आदि नाम शब्दकोशों से प्राप्त होते हैं । नामों की सार्थकता 


1.अयोध्या शब्द का सर्वोपरि अर्थ ये है कि -जहाँ युद्ध ना हुए हों , दूसरा अर्थ है जिसे युद्ध में हराया ना जा सके अथवा जिससे कोई युद्ध की इच्छा न रखता हो । 


2.अपराजिता-जो अपराजेय हो वह है अयोध्या ।


3.अवध- जहाँ प्राणी मात्र का वध ना हुआ हो। अहिंसक अयोध्या ।

4.  कौशल- जो धर्म ,शांति, जीव रक्षा, न्याय ,असि-मसि-कृषि-विद्या-वणिज्य, शिल्प एवं अन्य विद्याओं में कुशल हो वह है अयोध्या ।


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*जैन धर्म का सनातन सम्बन्ध अयोध्या से -*

जैन धर्म  के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों के जन्म स्थली जैन शास्त्रों में  सनातन नियम के रूप में उल्लेख प्राप्त होने से इसे शाश्वत (अविनाशीक) भूमि कहा जाता हैं ।

जैन मानता के अनुसार काल चक्र को 6 काल संज्ञाओं में विभाजित किया गया है । जब कई कल्प व्यतीत हो जाते हैं तब हुडावसर्पिणी काल आता है । जिसमें सब यथावत रहता है पर कुछ विसंगतियां रहती हैं , उसी कारण से वर्तमान के 24 तीर्थंकरों में केवल 5 तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में हुआ । 

जिसमें जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान वृषभदेव का जन्म 14 वे मनु (कुलकर) के नाभिराय के यहां हुआ , इनके अतिरिक्त 

श्री अजितनाथ, श्री अभिनन्दननाथ, श्री सुमतिनाथ और  श्री अनन्तनाथ भगवान का जन्म  भी अयोधया में हुआ । 

जैन शास्त्रों में जहाँ तीर्थंकर का जन्म होता है वहां गर्भ के 6 माह पूर्व से जन्म तक कुल 15 माह तक कुबेर इन्द्र    द्वारा प्रहर क्रम से रत्नों की वर्षा करता है । इसलिए उस भूमि को हिरण्य- गर्भा,रत्न -गर्भा, स्वर्ण -गर्भा आदि नामों से भी उल्लेखित किया गया है ।

जैन धर्म ग्रंथों में श्री सम्मेदशिखर एवं अयोध्या को शाश्वत भूमि के रूप में स्वीकार किया गया है ।

यह शाश्वत भूमि है -जिसका विनाश कल्पकाल के  अंत में भी नहीं होता है ।केवल दोनों के ध्रुव परिवर्तित होते हैं । इन भूमियों के नीचे शाश्वत स्वस्तिक स्थित है । इसलिए भी इन्हें शाश्वत कहा जाता है । 

भगवान राम का जन्म अयोध्या में और कुंडलपुर के बड़े बाबा के रूप में विश्व विख्यात  प्रथम तीर्थंकर का जन्म ,कुल  आदि में समानता की कड़ी को जोड़कर रखती है । 

भगवान वृषभ देव के पुत्र भरत चक्रवर्ती एवं श्री राम के अनुज भरत के नाम पर भारत का नामोल्लेख यह भी इस कड़ी को मजबूत करता है ।


द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजित नाथ के समय में  श्री राम के पूर्वज  महाराज सगर चक्रवती उनके पुत्र एवं भगीरथ -   गंगावतरण  आदि की कथा वर्णित है ।

उपरोक्त साक्ष्य जैन धर्म और राम को बेजोड़ बनाते हैं ।

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