Sunday, March 21, 2021

जन्म राशि के अनुसार तिलक का प्रयोग

 राशि के हिसाब से तिलक लगाने से राशि का स्वामी ग्रह प्रबल होता है और व्यक्ति को बहुत से लाभ मिलते हैंं. इससे व्यक्ति के शरीर में बहुत तेजी से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वो पूर्ण एकाग्रता के साथ किसी भी काम को करता है ।

जब भी आप पूजा-पाठ के दौरान माथे पर तिलक लगाते होंगे तो आपको अंदर से एक सकारात्मक ऊर्जा का अहसास होता होगा. दरअसल धार्मिक दृष्टि से माथे के बीच का स्थान बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. मान्यता है कि इस जगह पर आज्ञाचक्र होता है, जिसे ऊर्जा का केंद्र माना जाता है. तिलक लगाने से ये चक्र उद्दीप्त होता है. जिसकी वजह से व्यक्ति का मन शांत और एकाग्र होता है. इसके अलावा मस्तक के बीच के स्थान को त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है क्योंकि यही स्थान शरीर की तीन नाड़ियों के मिलन का भी केंद्र होता है.


माथे पर तिलक लगाने से व्यक्ति में तेज की वृद्धि होती है और वो स्वयं को ऊर्जावान महसूस करता है. धार्मिक रूप से हम सब रोली, हल्दी, चंदन, भस्म, कुमकुम आदि का तिलक लगाते हैं. लेकिन ज्योतिष विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तिलक अपनी राशि के अनुसार लगाया जाए तो ये कहीं ज्यादा प्रभावी होता है. इसे लगाने से राशि का स्वामी ग्रह प्रबल होता है और व्यक्ति को बहुत से लाभ मिलते हैंं. इससे व्यक्ति के शरीर में बहुत तेजी से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और वो पूर्ण एकाग्रता के साथ किसी भी काम को करता है. इससे उसकी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की के योग का निर्माण होता है. यहां जानिए राशि के हिसाब से कौन सा तिलक लगाना चाहिए.



मेष : इस राशि वालों को हमेशा लाल कुमकुम या रोली का तिलक लगाना चाहिए क्योंकि मेष का स्वामी मंगल होता है. मंगल का रंग लाल माना गया है.


वृष : ये शुक्र के स्वामित्व वाली राशि है. ऐसे लोगों को मस्तक पर सफेद चंदन लगाना चाहिए. अगर सफेद चंदन न हो तो दही से मस्तक पर तिलक लगा सकते हैं.


मिथुन : मिथुन राशि वालों के लिए अष्टगंध का तिलक लगाना बहुत शुभ माना गया है. अष्टगंध आठ गंधद्रव्यों का संग्रह होता है. ये दो तरह का होता है शैव और वैष्णव. गृहस्थ लोगों को शैव अष्टगंध का प्रयोग करना चाहिए.


कर्क : इस राशि का स्वामी चंद्रमा है. चंद्रमा का रंग सफेद होता है. ऐसे लोगों को सफेद रंग का चंदन मस्तक पर लगाना चाहिए.


सिंह : सिंह राशि वालों का स्वामी सूर्य है. ऐसे लोगां को लाल रंग के कुमकुम या रोली का तिलक लगाना चाहिए.


कन्या : इस राशि का स्वामी भी बुध है. ऐसे लोगों को भी अष्टगंध का तिलक लगाने से काफी लाभ होता है.


तुला : शुक्र ग्रह तुला राशि का स्वामी होता है. इस राशि के जातक भी सफेद चंदन या दही का तिलक लगाएं.


वृश्चिक : मंगल ग्रह के स्वामित्व वाली इस राशि के जातकों को लाल रंग का तिलक मस्तक पर लगाना चाहिए.


धनु : धनु राशि के स्वामी गुरू बृहस्पति हैं. ऐसे लोगों को पीला चंदन या हल्दी को मस्तक पर लगाना चाहिए.


मकर : मकर राशि के स्वामी शनिदेव हैं. इन लोगों को काली भस्म या काला काजल मस्तक पर लगाना चाहिए.


कुंभ : इस राशि के लोगों को भी काली भस्म या काजल ही माथे पर लगाना चाहिए क्योंकि कुंभ राशि के स्वामी भी शनिदेव हैं.


मीन : ये राशि बृहस्पति के स्वामित्व वाली राशि है. ऐसे लोगों को पीला चंदन, केसर या हल्दी का तिलक लगाना चाहिए.

Saturday, March 13, 2021

मंत्रों के प्रयोग

 *मुख्य मंत्रों के  9 भेद*


(1)  *स्तम्भण मंत्र* 

(2)  *मोहन मंत्र*

(3)  *उच्चाटन मंत्र*

(4)  *वश्याकर्षण मंत्र*

(5)  *जृम्भण मंत्र*

(6)  *विद्वेषण मंत्र*

(7)  *मारण मंत्र*

(8)  *शांति मंत्र*

(9)  *पौष्टिक मंत्र*


1 *स्तम्भन* - *जिन मंत्र ध्वनियों के द्वारा सर्प , व्याघ्र, सिंह, आदि ,भूत, प्रेत , पिशाच, आदि दैविक बाधाओं को , शत्रु सेना के आक्रमण को जहां के तहां निष्क्रिय कर स्तम्भित (कील) देना मंत्र का फल है।*


(2) *मोहन* - *जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा किसी को भी मोहित कर दिया जाये वह मोहन मंत्र है।*


(3) *उच्चाटन* - *जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा किसी के मन को अस्थिर, उल्लास रहित एवं विक्षिप्त, निरुत्साहित, स्थानभ्रष्ट हो जाये वह उच्चाटन मंत्र है।*


(4) *वश्याकर्षण*- *जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा इच्छित वस्तु या व्यक्ति वश में हो जाये, किसी का विपरीत मन भी बदल जाये वह वश्याकर्षणमंत्र है।*


(5) *जृम्भण मंत्र* - *जिन  मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा शत्रु , भूत ,प्रेत, व्यंतर, भी भयभीत हो वह मंत्र जृम्भण मंत्र है।*


(6) *विद्वेषण मंत्र* - *जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा कुटुम्ब, जाति, देश, समाज, राष्ट्रादि में कलह वैमनस्य हो जाये वह विद्वेषण मंत्र है।*


(7) *मारण मंत्र* - *जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा शत्रु, प्रतिकूल व्यक्तियों के प्राणों का वियोग हो वह मारण मंत्र है।*


(8) *शांति मंत्र* - *जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा भंयकर व्याधि, व्यंतर, भूत-पिशाचों की पीडा, क्रूर ग्रह - जंगम स्थावर, विष बाधा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुर्भिक्षादि, ईतियों और चोर आदि का भय शांत हो वह शान्तिमंत्र है।*


(9) *पौष्टिक मंत्र*- *जिन मंत्रों की ध्वनियों के द्वारा सुख समाग्रियों की प्राप्ति, सन्तान आदि की प्राप्ति हो वह मंत्र पौष्टिक मंत्र है।*


** *वश्य, आकर्षण , उच्चाटन मंत्र में हूं का प्रयोग किया जाता है।*


** *स्तम्भण , विद्वेषण ,मोहन मंत्र में नम: का प्रयोग किया जाता है।*


** *पौष्टिक मंत्र के लिए वषट् का प्रयोग किया जाता है।*


** *मारण मंत्र में फट् का प्रयोग किया जाता है।*


** *मंत्र के अन्त में स्वाहा शब्द पाप नाशक ,मंगलकारक, तथा आत्मा की आंतरिक शांति को उद्बुद्ध करने वाला बतलाया है।**



Monday, March 1, 2021

आर्त ध्यान का विश्लेषण

 *आर्त ध्यान*


पीड़ा से उत्पन्न हुए ध्यान को आर्तध्यान कहते हैं। इसके चार भेद हैं-विष, वंटक, शत्रु आदि अप्रिय पदार्थों का संयोग हो जाने पर ‘वे कैसे दूर हों’ इस प्रकार चिन्ता करना प्रथम अनिष्ट-संयोगज आर्तध्यान है। अपने इष्ट-पुत्र, स्त्री और धनादिक के वियोग हो जाने पर उसकी प्राप्ति के लिए निरन्तर चिन्ता करना द्वितीय इष्टवियोगज आर्तध्यान है। वेदना के होने पर उसे दूर करने के लिए सतत चिन्ता करना तीसरा वेदनाजन्य आर्तध्यान है। आगामी काल में विषयों की प्राप्ति के लिए निरन्तर चिन्ता करना चौथा निदानज आर्तध्यान है। यह आर्तध्यान छठे गुणस्थान तक हो सकता है। छठे में निदान नाम का आर्तध्यान नहीं हो सकता है।


ये ध्यान दुर्ध्यान में आता है । जो नरक का मार्ग दिखाता है ।


आर्त ध्यान - चार प्रकार का होता है ।


1. अनिष्ट का संयोग -2 .इष्ट का वियोग ,3.वेदना 4.निदान ।


           *अनिष्ट संयोग*

स्वयं की अपेक्षा, आशा, इच्छा , आवश्यकता, मनसा के अनुरूप वस्तु, व्यक्ति,पदार्थ, आदि की प्राप्ति ना होंना अपितु अनेच्छिक ही मन मारकर मजबूरी में कार्य करना कराना आदि का उपस्थित होना, उसका चिंतन करना अनिष्ट संयोग नामक आर्त ध्यान है ।

*इष्ट वियोगज*

अपने प्राणों से प्रिय -मित्र, बन्धु,परिजन,पति, स्त्री,पुत्र, धन, भवन-वाहन, सत्ता, उत्तराधिकार आदि जिसे जीवन में सबसे अधिक महत्व दिया हो प्रिय माना हो उनके वियोग हो जाने पर उनका बार-बार चिंतन करना 

इष्ट वियोगज नामक आर्त ध्यान है । 


*वेदना जन्य*

शारीरिक-मानसिक-वाचनिक वेदना के उत्पन्न होने पर उससे निजात पाने के उपाय का चिंतन करना वेदना जन्य आर्त ध्यान है ।


       *निदानज*

इस जन्म की अवस्थाओं में जो प्राप्त नहीं हुआ उसे अगली अवस्था में प्राप्ति का चिंतन एवं इस भव में अप्राप्त इच्छाओं, वैभव, सुख, अभिलाषाओं,  की प्राप्ति की कामना आगामी काल ,भव, जन्म में करना कि ये मुझे प्राप्त हो, ये वस्तु मेरे पास होना चाहिए आदि अनेक चिंतन करना निदानज आर्त ध्यान है ।


सर्व प्रकार के धर्म एक ध्यान में अंतर्भूत हैं

द्रव्यसंग्रह टीका/47

*दुविहं पि मोक्खहेउं ज्झाणे पाउणदि जं मुणी णियमा। तम्हा पयत्तचित्ता जूयं झाणं समब्भसह।47।*

=मुनिध्यान के करने से जो नियम से निश्चय व व्यवहार दोनों प्रकार के मोक्षमार्ग को पाता है, इस कारण तुम चित्त को एकाग्र करके उस ध्यान का अभ्यास करो।( तत्त्वानुशासन/33 )


अतः ज्ञानी जीव को आर्त ध्यान का परित्याग करना चाहिए । यह सीधा नरक तक ले जाता है ।


डॉ आशीष जैन शिक्षाचार्य 

कला एवं मानविकी संकायाध्यक्ष(डीन)

विभागाध्यक्ष संस्कृत विभाग 

एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह मध्यप्रदेश

गाय के गोबर का महत्व

 आयुर्वेद ग्रंथों  में हमारे ऋषि मुनियों ने पहले ही बता दिया गया  था कि   *धोवन पानी पीने का वैज्ञानिक तथ्य और आज की आवश्यकता* वायुमण्डल में...