*आर्त ध्यान*
पीड़ा से उत्पन्न हुए ध्यान को आर्तध्यान कहते हैं। इसके चार भेद हैं-विष, वंटक, शत्रु आदि अप्रिय पदार्थों का संयोग हो जाने पर ‘वे कैसे दूर हों’ इस प्रकार चिन्ता करना प्रथम अनिष्ट-संयोगज आर्तध्यान है। अपने इष्ट-पुत्र, स्त्री और धनादिक के वियोग हो जाने पर उसकी प्राप्ति के लिए निरन्तर चिन्ता करना द्वितीय इष्टवियोगज आर्तध्यान है। वेदना के होने पर उसे दूर करने के लिए सतत चिन्ता करना तीसरा वेदनाजन्य आर्तध्यान है। आगामी काल में विषयों की प्राप्ति के लिए निरन्तर चिन्ता करना चौथा निदानज आर्तध्यान है। यह आर्तध्यान छठे गुणस्थान तक हो सकता है। छठे में निदान नाम का आर्तध्यान नहीं हो सकता है।
ये ध्यान दुर्ध्यान में आता है । जो नरक का मार्ग दिखाता है ।
आर्त ध्यान - चार प्रकार का होता है ।
1. अनिष्ट का संयोग -2 .इष्ट का वियोग ,3.वेदना 4.निदान ।
*अनिष्ट संयोग*
स्वयं की अपेक्षा, आशा, इच्छा , आवश्यकता, मनसा के अनुरूप वस्तु, व्यक्ति,पदार्थ, आदि की प्राप्ति ना होंना अपितु अनेच्छिक ही मन मारकर मजबूरी में कार्य करना कराना आदि का उपस्थित होना, उसका चिंतन करना अनिष्ट संयोग नामक आर्त ध्यान है ।
*इष्ट वियोगज*
अपने प्राणों से प्रिय -मित्र, बन्धु,परिजन,पति, स्त्री,पुत्र, धन, भवन-वाहन, सत्ता, उत्तराधिकार आदि जिसे जीवन में सबसे अधिक महत्व दिया हो प्रिय माना हो उनके वियोग हो जाने पर उनका बार-बार चिंतन करना
इष्ट वियोगज नामक आर्त ध्यान है ।
*वेदना जन्य*
शारीरिक-मानसिक-वाचनिक वेदना के उत्पन्न होने पर उससे निजात पाने के उपाय का चिंतन करना वेदना जन्य आर्त ध्यान है ।
*निदानज*
इस जन्म की अवस्थाओं में जो प्राप्त नहीं हुआ उसे अगली अवस्था में प्राप्ति का चिंतन एवं इस भव में अप्राप्त इच्छाओं, वैभव, सुख, अभिलाषाओं, की प्राप्ति की कामना आगामी काल ,भव, जन्म में करना कि ये मुझे प्राप्त हो, ये वस्तु मेरे पास होना चाहिए आदि अनेक चिंतन करना निदानज आर्त ध्यान है ।
सर्व प्रकार के धर्म एक ध्यान में अंतर्भूत हैं
द्रव्यसंग्रह टीका/47
*दुविहं पि मोक्खहेउं ज्झाणे पाउणदि जं मुणी णियमा। तम्हा पयत्तचित्ता जूयं झाणं समब्भसह।47।*
=मुनिध्यान के करने से जो नियम से निश्चय व व्यवहार दोनों प्रकार के मोक्षमार्ग को पाता है, इस कारण तुम चित्त को एकाग्र करके उस ध्यान का अभ्यास करो।( तत्त्वानुशासन/33 )
अतः ज्ञानी जीव को आर्त ध्यान का परित्याग करना चाहिए । यह सीधा नरक तक ले जाता है ।
डॉ आशीष जैन शिक्षाचार्य
कला एवं मानविकी संकायाध्यक्ष(डीन)
विभागाध्यक्ष संस्कृत विभाग
एकलव्य विश्वविद्यालय दमोह मध्यप्रदेश
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