Thursday, April 13, 2023

नाम पालन मकसद हत्या

 इस दुनिया मे सबसे कठिन काम है, अपनी मौत का इंतजार करना 😭

◆ अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है। बाकी तो मौत को enjoy ही करता है आदमी ...

🙏थोड़ा समय निकाल कर अंत तक पूरा पढ़ना 🙏


 ✍️ मौत के स्वाद का 

चटखारे लेता मनुष्य ...

थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है ...


मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है---


बकरे का, 

गाय का,

भेंस का,

ऊँट का,

सुअर,

हिरण का,

तीतर का, 

मुर्गे का, 

हलाल का, 

बिना हलाल का, 

ताजा बकरे का, 

भुना हुआ,

छोटी मछली, 

बड़ी मछली, 

हल्की आंच पर सिका हुआ। 

न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के।

क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा....


स्वाद से कारोबार बन गई मौत। 

मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स।

नाम *पालन* और मक़सद *हत्या*❗ 

स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुले नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।


 जो हमारी तरह बोल नही सकते, 

अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, 

उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ?

 कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ?

 या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?


डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए ! 


बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...??

 जिसे काटा गया होगा ? 

जो कराहा होगा ? 

जो तड़पा होगा ? 

जिसकी आहें निकली होंगी ? 

जिसने बद्दुआ भी दी होगी ?


 कैसे मान लिया कि जब जब  धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो

भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे  ..❓


क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं .❓

क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है  ..❓

धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो।

कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो । 


कभी सोचा ...!!!

क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ?


किसे ठग रहे हो ?

भगवान को ? 

अल्लाह को ?  

जीसस को?

या खुद को ?


मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!!

आज शनिवार है इसलिए नहीं ...!!!

अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!!

नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....!!!


झूठ पर झूठ....

...झूठ पर झूठ

..झूठ पर झूठ ..


ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको। लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया।


तुम्ही कहते हो, की हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी। 

यह संकेत है ईश्वर का। 


प्रकृति के साथ रहो।

प्रकृति के होकर रहो।

शाकाहारी बनो

Monday, April 10, 2023

दोस्त का कोई जेंडर नहीं होता

 दोस्त का कोई gender नहीं होता

और दोस्ती का कोई founder नहीं होता

मन मिल जाने की बात है सारी

कब क्यूँ कहाँ का कोई calender नहीं होता !!


बिन कहे देख पाता है 

तकलीफ दिल की

रिश्तों जैसा इसमें कोई

Blunder नहीं होता!


साथ निभाने की कोई

सीमा नहीं होती

छोड़ जाने का कोई

Wonder नहीं होता !


साथ देते हैं दोस्त 

आखिरी सांस तक

क्यूंकि दोस्ती का कोई

Tender नहीं होता !


दोस्त हैं ऑक्सीजन

ज़िन्दगी की

मगर इस गैस का कोई

Cylender नहीं होता !


पहचान लें जो आँख का

ऑंसू बारिशों में भी

वो दोस्त है कोई

All rounder नहीं होता !


खींच लेते हैं दोस्त

हर ग़म की चादर

इन जैसा कोई

Allexender नहीं होता !


लाइफ लाइन हैं

दोस्त ज़िन्दगी की

और दोस्ती का कोई

Gender नहीं होता !!!!                                                                                                  💫🌹, 🌹🌹🌹🌹🌹🌹


🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

पंचायत के हालात चालाक मन समझदार गुरु

*चालाक मन, समझदार गुरु*           
                                    *पंचायतों की हालत*

जब आपके आसपास चालाक और लोभी लोग हों, तो उनसे काम करवाने के लिए आपको उनसे भी ज्यादा चतुर होना पड़ता है, तभी आप उनसे जीत सकते हैं। सूफी कहते हैं, ऐसे लोगों से काम सीधे नहीं करवाए जाते । चालाकी ही चालाकी को काट सकती है, लेकिन उसके लिए आपकी नजर पैनी होनी चाहिए। चालाक लोग बाहर से बहुत सज्जन दिखाई देते हैं। उन्हें पहचानना जरूरी है। फिर दिल में सद्भाव रखकर की गई चालाकी शुभ परिणाम लाती है। इस बात को समझाने के लिए ओशो एक सूफी कहानी कहते हैं। यह कहानी सूफी गुरु अपने शिष्यों के प्रशिक्षण में कहते हैं।

एक अमीर आदमी मरने से पहले एक वसीयत कर गया। वह न केवल अमीर था, वरन बुद्धिमान भी था । उसका बेटा केवल दस वर्ष का था, इसलिए उस अमीर व्यक्ति ने एक वसीयत बनाई, जिसमें उसने गांव के पांच बुजुर्गों की पंचायत को लिखा 'मेरी संपत्ति में से जो कुछ भी आपको सबसे अच्छा लगे, ले लो, फिर बाद में मेरे बेटे को दे दो।'

इच्छा सूर्योदय के समान स्पष्ट थी। पांचों बुजुर्गों ने सारी संपत्ति बांट ली। जो कुछ भी मूल्यवान था, उन्होंने आपस में बांट लिया। कुछ बचा ही नहीं सिवाय उसके, जो बेकार था। कोई उसे लेने को तैयार नहीं था, तो बच्चे को दे दिया गया। लेकिन मरते हुए आदमी ने बेटे के नाम भी एक चिट्ठी दी थी, जिसे उसे बड़े होने पर खोलना था। जब बच्चा बड़ा हुआ, तो उसने वह पत्र खोला, जिसमें उसके पिता ने लिखा था 'निस्संदेह, ये बुजुर्ग लोग वसीयत की व्याख्या अपने तरीके से करेंगे। जब तुम बालिग हो जाओ, तो यह पत्र उन लोगों को दिखाओ; यह मेरी व्याख्या है। मेरे कहने का मतलब यह है कि वह

सब ले लो, जो आपको सबसे ज्यादा पसंद है, और फिर जो आपको सबसे ज्यादा पसंद है, उसे मेरे बच्चे को दे दो। मैंने जो लिखा, उसमें यह शर्त है।

बेटे ने पंचायत के सामने पत्र पेश किया। उन्होंने कभी ऐसा अर्थ नहीं सोचा था, इसलिए उन्होंने सब कुछ आपस में बांट लिया था। लेकिन कानून के मुताबिक उन्हें सब कुछ वापस कर देना पड़ा, क्योंकि अब अर्थ

सूफी कहते हैं, धूर्त लोगों से काम सीधे नहीं करवाए जाते। ऐसे लोग बाहर से बहुत सज्जन दिखते हैं। उन्हें पहचानना जरूरी है । फिर दिल में सद्भाव रखकर की हुई चालाकी शुभ परिणाम लाती है ।

स्पष्ट हो गया था और लड़का लेने के लिए परिपक्व भी था। पिता ने अपने बेटे को यह भी लिखा था 'यह अच्छा है कि वे सब अपने तरीके से इसकी व्याख्या करें, क्योंकि अगर मैं तुम्हारी उचित उम्र से पहले इसे सीधे तुम्हें दे दूं, तो इसे इन बुजुर्गों द्वारा नष्ट किया जाएगा। इसलिए जब तक तुम इसे संभालने के योग्य नहीं हो जाते, तब तक अपनी संपत्ति मानकर उन्हें इसकी रक्षा करने दो। इससे दोहरा काम होगा, संपत्ति की सही देखभाल भी होगी और वक्त आने पर यह तुम्हें मिल भी जाएगी।'

प्रेरक घटना

 डॉo राही मासूम रज़ा को फ़िल्म निर्माता व निर्देशक बी०आर० चोपड़ा ने "महाभारत" टी०वी० सीरियल की पटकथा ( STORY  SCRIPT ) लिखने को कहा।


राही मासूम रज़ा ने इनकार कर दिया। दूसरे दिन यह ख़बर न्यूज़ पेपर में छप गयी।


हज़ारों लोगों ने चोपड़ा साहब को ख़त लिखा कि :--- एक मुसलमान ही मिला "महाभारत" लिखवाने के लिए ?


चोपड़ा साहब ने सारे ख़तों को राही मासूम रज़ा के पास भिजवा दिया।


ख़तों के ज़खीरे को देखने के बाद राही मासूम रज़ा ने चोपड़ा साहब से कहा कि -- अब तो मैं ही लिखूँगा "महाभारत" की पटकथा , क्योंकि मैं गंगा का पुत्र हूँ।


राही मासूम रज़ा ने जब टी०वी० सीरियल "महाभारत" की पटकथा लिखी तो उनके घर में ख़तों के अंबार लग गए। लोगों ने डॉ० राही मासूम रज़ा की ख़ूब तारीफें की एवं उन्हें ख़ूब दुआएँ दी।


ख़तों के कई गट्ठर बन गए , लेक़िन एक बहुत छोटा सा गट्ठर उनकी मेज़ के किनारे सब ख़तों से अलग पड़ा था।


उनकी मेज़ के किनारे अलग से पड़ी हुई ख़तों की सबसे छोटी गट्ठर के बारे में वज़ह पूछने पर राही मासूम रज़ा साहब ने ज़वाब दिया कि --- ये वह ख़त हैं जिनमें मुझे गालियाँ लिखी गयी हैं।


कुछ हिंदू इस बात से नाराज़ हैं कि तूम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुसलमान होकर "महाभारत" की पटकथा लिखने की ?

 

कुछ मुसलमान नाराज़ हैं कि तुमने हिंदुओं की क़िताब को क्यूँ लिखा ?


राही साहब ने कहा :-- ख़तों की यही सबसे छोटी गट्ठर दरअसल मुझे हौसला देती है कि मुल्क में बुरे लोग कितने कम हैं"।


 

याद रखने की बात ये है कि :-

आज़ भी नफ़रत फ़ैलाने वालों की "छोटी गट्ठर" हमारे प्यार -मोहब्बत के "बड़े गट्ठर" से बहुत छोटी है।

गाय के गोबर का महत्व

 आयुर्वेद ग्रंथों  में हमारे ऋषि मुनियों ने पहले ही बता दिया गया  था कि   *धोवन पानी पीने का वैज्ञानिक तथ्य और आज की आवश्यकता* वायुमण्डल में...