Sunday, August 9, 2020

सुभाषितरत्न संदोह नामक नीति शास्त्र का संक्षिप्त परिचय*

 *आचार्य अमित गति एवं  सुभाषितरत्न संदोह नामक नीति शास्त्र का संक्षिप्त परिचय*


✍️© डॉ आशीष जैन शिक्षाचार्य

       जिला परामर्शदाता CMCLDP दमोह


आचार्य अमितगति एक समर्थ ग्रंथकार थे । आपका संस्कृत भाषा पर असाधारण अधिकार आपकी  उदबोधन प्रधान रचनाओं की प्रांजल रचना शैली प्रसादगुण युक्त सरल सरस् काव्यकौमुदी रसास्वादन सहज ही  सहृदय को आल्हादित करता  है ।  आप आचार्य माधवसेन जी के शिष्य थे । सभाषित रत्न संदोह की प्रशस्ति  से उसकी रचना  संवत 1050 में मुंजनृपतौ अर्थात राजा मुंज के शासनकाल में हुई थी ।


*सुभाषितरत्न संदोह*


पृथ्वी पर तीन रत्न ही रत्न हैं - जलं अन्नं सुभाषितं । उन्हीं तीन रत्नों में से सुभाषितरत्न सर्व श्रेष्ठ रत्न है । अतः संस्कृत साहित्य में सुभाषितों की प्रचुरता है। 

आचार्य अमितगति की सुभाषित रत्न संदोह नामक कृति ने जैन संस्कृत के सुभाषित रत्न  भांडागार की  श्री  वृद्धि की है ।  यह ग्रन्थ 32 प्रकरणों में विभक्त 922 पद्यों में सृजित 339 पृष्ठों  में  श्री जीवराज जैन ग्रंथमाला सोलापुर से प्रकाशित है ।  यह ग्रंथ उद्बोधन प्रधान है जिसमें मनुष्य को असत्प्रवृत्तियों  को त्यागकर सत्प्रवृत्तियों को अपनाने की प्रेरणा प्रदान की गई है ।


*सभाषित रत्न संदोह के 32 प्रकरण*


1. सांसारिक विषय विचार- 20 पद्य

2. कोप निषेध    -               20 पद्य

3. मान माया निषेध-           20 पद्य 

4. लोभ निवारण -               20 पद्य

5.इन्द्रीयराग निषेध-             20 पद्य

6.स्त्री गुण-दोष विचार -        20पद्य

7. मिथ्यात्व-सम्यक्त्वविचार -20 पद्य

8.ज्ञान निरूपण-                 30 पद्य 9.चारित्र निरूपण  -           30 पद्य 10.जन्म निरूपण-           26 पद्य 11.जरा निरूपण - 24 पद्य 

12.मरण निरूपण- 20 पद्य

13.अनित्यता निरूपण-24 पद्य 

14. दैव निरूपण- 32 पद्य

15.जठर निरूपण- 20 पद्य

16.जीव संबोधन -24 पद्य

 17. दुर्जन निरूपण -24 पद्य

18. सूजन निरूपण-18पद्य 

19.दान निरूपण -19 पद्य

20.मद्य निषेध-25 पद्य .

21.मांस निषेध- 26 पद्य 

22.मधु निषेध -22 पद्य

 23. काम निषेध- 25 पद्य 

24. वेश्यासंग निषेध- 25पद्य

 25.द्यूत निषेध -20 पद्य

26.आप्त विचार -22पद्य

27.गुरु स्वरूप  -26पद्य

28.धर्म निरूपण- 22पद्य

29.शोक निरूपण-28 पद्य

30.शौच निरूपण-22पद्य

31.श्रावक धर्म कथन-117 पद्य

32.तपश्चरण निरूपण-  36पद्य


*विशेष*

 ग्रन्थकार प्रशस्ति-8 पद्य इस प्रकार सम्पूर्ण ग्रन्थ में 922 पद्य हैं।  जिनमें उपरोक्त 32 प्रकरणों में  सुललित प्रासाद गुण युक्त पद्यों में विविध छन्दों का प्रयोग ,वर्णन शैली कल्पना शक्ति और कवित्व शक्ति आपके संस्कृत भाषा के असाधारण अधिकार को स्वाभाविक प्रकट ही नहीं करती अपितु  विषयानुकूल वर्णन का चित्र पाठक के चित्त पर अंकित भ्य करता है ।

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