*भगवान महावीर की अहिंसा का सिद्धांत विश्वयुद्धों की शांति का अमोघ उपाय*
डॉ आशीष जैन शिक्षाचार्य अध्यक्ष,संस्कृत विभाग, एकलव्य विश्विद्यालय दमोह मध्यप्रदेश
*भगवान महावीर की अहिंसा*
अहिंसा का सिद्धांत प्राचीन काल से ही जैन दर्शन में सर्वोपरि रहा है। जैन धर्म में महावीर एवं अहिंसा एक मूलभूत तत्व नहीं अपितु अहिंसा सिद्धांत का प्रतिपादन जैन धर्म के पांच मुख्य सिद्धांतों अहिंसा,सत्य,अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह में भगवान महावीर स्वामी के लिए सर्वोपरि और श्रेष्ठ प्रतिपादक के रूप में स्थान प्रदान करता है ,उन्होंने अहिंसा की परिभाषा प्रतिपादित की है -- मानसिक, वाचनिक, शारीरिक या अस्पष्ट या स्पष्ट रूप से जाने या अनजाने में साभिप्राय और बिना शर्त के स्वयं से या दूसरों के द्वारा किसी छोटे-बड़े जीव को आघात ना पहुंचाना,आहत ना करना और ना ही हत्या करना है, अहिंसा है ।
जियो और जीने दो का सिद्धांत वाक्य अहिंसा है ।
दूसरों की पीड़ा दूर करने में सहायता करना और जीने में सहायता एवं प्रेरणा मार्गदर्शन देना अहिंसा है ।।
*अहिंसक के गुण-*
स्नेह, हर्ष, शांति,सहनशीलता, दया, विश्वसनीयता, सज्जनता तथा आत्मनियंत्रण महावीर की अहिंसा के पालक के गुण हैं । जिनका विकास मानव में होते ही उसके मन में सबके प्रति आदर का भाव, दूसरों के विचारों के प्रति सम्मान, घृणा और मोह का परित्याग,कर्मों के अंत:प्रवाह में कमी, शत्रु के प्रति क्षमा-सद्भावना का सर्वोत्कृष्ट विकास स्वतः ही होने लग जाता है ।।
जीव दया, अनुकम्पा,क्षमा संयम,समता, सुखोपलब्धि में सहायता,क्रोधादि कषाय शांति,क्लेशोपशान्ति आदि अनेक गुणों की खान अहिंसा मानव संस्कृति व प्राणी मात्र की संरक्षक होने से विश्व शांति का बीज मंत्र है । जो विश्वयुद्धों को शांत करने में सक्षम है।
सुत्रकृतांग में कहा भी गया है-
*सर्वाणि सत्वानि सुखे रतानि,*
*दुःखाच्च सर्वाणि समुद विजन्ति ।*
*तस्मात सुखार्थी सुखमेव दद्यात ,*
*सुख प्रदाता लभते सुखानि ।*
सभी जीव सुख चाहते हैं, दुख से भयभीत रहते हैं, इसलिए सुखार्थी के लिए सुख देने वाले सुख प्रदाता को सुख की प्राप्ति होती है ।
अर्थात जो व्यवहार स्वयं के लिए अप्रिय है वह दूसरों के लिए कैसे प्रिय हो सकता है ।
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