Wednesday, August 17, 2022

दमोह जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

 दमोह जिले के अपराजेय जैन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी   


डॉ आशीष जैन शिक्षाचार्य

अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, 

एकलव्य विश्वविद्यालय, दमोह  निदेशक-संस्कृत प्राकृत तथा प्राच्यविद्या अनुसन्धान केंद्र दमोह    

’9826443973

                                

 *नमःस्वाधीन कर्त्तारं,भेत्तारं परतन्त्रताम् ।* *स्वाधीनसंग्रामयोद्धान्,सेनानिभ्यः नमो नमः।।*     

भारत देश की स्वतंत्रता का मुख्य बीज 1857 की क्रान्ति से माना जा सकता है । आजादी के इस महायज्ञ में देश की शांति , धर्म एवं संस्कृति का सम्मान , पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए देश के शहीदों ने अपने प्राणों की आहूति देते समय अनेकों गोलियाँ , जेल यात्राएं,फांसी, डण्डे , क्षुधा , तृषा , पारिवारिक वियोग , पारिवारिक विघटन आदि अनेकांे यातनाओं- मानसिक प्रताड़नाओें एवं समस्याओं का सामना किया ।

भारत के संविधान निर्माण और आजाद हिन्द फौज में भारत के जैन समाज ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है जिसमें विशेष रूप से मध्यप्रदेश , उत्तर प्रदेश ,राजस्थान, छत्तीसगढ़,उत्तरांचल के जैन स्वतन्त्रता के दीवाने सेनानियों ने  एवं जैन पत्रकारों,साहित्यकारों , कवियों , जैन मंदिरों की समितियों के पदाधिकारियों ने अपना प्रत्यक्ष एवं परोक्षरूप में पूर्ण चेतना के साथ सहयोग किया ।  अनेकों जैन परिवारों नें इस स्वतन्त्रता के समर को अपने धन एवं परोपकार की भावना से प्रेरित होकर आर्थिक सहयोग प्रदान कर जेल गए परिवारों का भरण - पोषण शिक्षा एवं सुरक्षा प्रदान की । 

 9 मई 1857 से 15 अगस्त 1947 तक - सम्पूर्ण देश  से लगभग  7 लाख 72 हजार 780 लोगों ने सक्रिय भूमिका स्वतन्त्रता संग्राम में निभायी थी  उनमें  जैन समाज  के  सेनानियों ने अपनी सक्रियता से  रही है      

 इस आलेख में मैं केवल दमोह जिले के जैन स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के स्वतन्त्रता संग्राम को दिए गए अवदान को प्रमुखता से उद्धृत कर रहा हूं। जिन्हें एकत्रित करने में प्रथमतः स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के परिवारों  तथा समाज के वरिष्ठजनों से संपर्क तथा कुछ शासकीय दस्तावेज,संग्राम में जैन नामक पुस्तक के आधार पर प्रस्तुत व एकत्रित किए गए नाम हैं                         


 दमोह जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम निम्न हैं   

1.अमर शहीद सिंघई प्रेमचंद जैन,                                

 2.अमर शहीद चौधरी भैयालाल,                       

3.श्री कपूरचन्दचौधरी,        

4 .श्री कामता प्रसाद शास्त्री,

5.श्री कुंदनलाल जैन,            

6 .श्री गुलाबचंद सिंघई,         

7.श्री गोकुलचंद सिंघई,       

8.श्री चिन्तामन जैन सगरा,       

09 श्री डालचंद जैन,               

10 श्री पूरन चंद जैन,          

11.श्री प्रेमचंद कापड़िया,         

12.श्री बाबूराम जैन पथरिया,     

13.श्री बाबूलाल जैन पथरिया,  

14.श्री बाबूलाल पलन्दी ,    

15.श्री रघवर प्रसाद मोदी, 

16. श्री रघवर प्रसाद जुझार

17.सिंघई रतन चंद जैन,    

18.श्री राजाराम बजाज, 

19.श्रीरामचरण जैन,     

20 .सवाई सिंघई रूपचन्द जैन पटेरा,                             

21.नगर सेठ श्री लालचंद जैन, 

22.श्री लीलाधर सराफ,         

23.श्री शंकरलाल जैन उर्फ ज्ञानचंद जैन,                      

24.श्री शिवप्रसाद सिंघई,     

25.श्रीसाबूलाल जैन,             

26.श्री खेमचंद जी बजाज  

27.श्री नन्दनलाल सराफ 

28 राजाराम उर्फ राजेन्द्र जैन पथरिया



आप सभी ने दमोह जिले का नाम स्वतंत्रता संग्राम में अपना तन-मन-धन एवं सर्वस्व समर्पित करके स्वर्णाक्षरों से अंकित किया है  ।।                                         


 

1.अमर शहीद सिंघई प्रेमचन्द्र जैन - 

आप दमोह जिले के सेमरा बुजुर्ग में सिंघई सुखलाल एवं माता सिरदार बहु के घर जन्मे भारत माता के निर्भीक , साहसी , कर्मठ , समर्पित माल थे । आपकी शिक्षा महाराजा प्रताप हाई स्कूल से हुई । सन् 1933 में आपने दमोह पधारे महात्मा गांधी के भाषण को सुनकर झण्डा सत्याग्रह ,  जंगल सत्याग्रह ,नमक सत्याग्रह, विदेशी बहिष्कार ,स्वदेशी अपनाओ जैसे महाभियानों में अपना तन-मन-धन एवं सर्वस्व समर्पण किया । इन गतिविधियों को देख श्री रणछोड़शंकर धगट आपको गांधी आश्रम मेरठ ले गए । वहाँ 3 वर्षों तक रहे वहां से 1937 में लौटकर सिंघई गोकुलचंद , श्री रघुवर प्रसाद मोदी, श्री बाबुलाल पलंदी व प्रेमशंकर घगट के  साथ आप कांग्रेस के कर्मठ कार्यकर्ता बने । 

सन् 1939-40 के मध्य में द्वितीय विश्व युद्ध की स्थिति थी , उसके लिए ब्रिटिश सरकार सैनिकों की भर्ती अभियान चल रही थी । जिसमें ब्रिटिश सरकार अपना हित चाहती थी, दमोह के टाउन हाल में सागर के डिप्टी कमिश्नर फारुख दमोह आये उन्होंने 6000 श्रोताओं की जनसभा को सेना भर्ती हेतु सम्बोधित किया ।  सिंघई प्रेमचन्द्र जैन  भाषण के मध्य कमिश्नर के भाषण का बहिष्कार किया फलस्वरूप उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया , जनता ने इसका विरोध किया उन्हें छोड़कर सिंघई प्रेमचन्द्र जी का भाषण कराया गया । जिसमें उन्होंने ब्रिटिश सरकार की सेना भर्ती को निजी लाभ के उद्देश्य मुख्य कारण से जनता को अवगत कराया । जिससे उनके मनसूबों पर पानी फिर गया ।

14 जनवरी 1941 में हटा में सत्याग्रह किया ब्रिटिश शामन विरोधी भाषण के कारण उन्हें गिरफ्तार कर 4 माह कारावास की सजा दी गई । आपको सागर जेल से नागपुर जेल स्थानांतरित किया गया । नागपुर जेल में भाग्यवशात डिप्टी फारुख नागपुर जेल का स्थानांतरित हुए और उन्होंने दमोह के अपमान का का बदला , प्रेमचंद जी की सजा पूरी होने पर उन्हें प्रीति - भोज पर मृत्यु परोसकर लिया और उन्हें नागपुर से दमोह ट्रेन में व्यवस्थित बैठाया और दमोह आते - आते उनका स्वास्थ्य खराब होता गया और अन्ततः वह 9 मई 1941 को भारत माता की गोद में प्राणोत्सर्ग करके सदा - सदा   के लिए समा गए । 

2.श्री प्रेमचन्द्र उस्ताद - 

 आप बाहुवली व्यायाम शाला के शक्तिशाली पहलवान होने के कारण दमोह में उस्ताद नाम से विख्यात हुए । यद्यपि आप जबलपुर निवासी थे लेकिन आपके पिता श्री पन्नालाल जी जैन ने सन् 1904 में अपने बालक प्रेमचन्द का विवाह श्री सुखलाल चौधरी की पुत्री से किया और भाग्यवश आपने दमोह को अपना निवास रखा । आप पहलवानी के साथ बन्दूक व अन्य शस्त्रों को चलाने में ही नहीं अपितु उनके संग्रह में रूचिवान थे।  

 सन् 1923 में झण्डा सत्याग्रह के अवसर पर जबलपुर विक्टोरिया टाउन हाल की गुम्बज पर झण्डारोहण किया । फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार उन्हें गोली से मारने में विफल रही , उन्हें गिरफतार किया गया और 1वर्ष  6 माह का सी  ग्रेड का कठिन कारावास हुआ और वहां वे खड़े-खड़े पांच सेर गेहूं पीसने की सजा पाकर प्रसन्न रहे और अपने शरीर को और व्यवस्थित किया। 

आपकी राष्ट्र भावना के कारण दमोह में जैन सेवादल बना , जिसमें आप लाठी लेजिम , तलवार , भाला व अन्य आत्मरक्षा के शस्त्रों को चलाने का प्रशिक्षण देते थे । सन् 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस में केप्टिन ट्रेनिंग में 21 दिनों तक 110 स्वयं सेवकों को लेकर त्रिपुरी में रहे । 

सन् 1942 के बम्बई कांग्रेस अधिवेशन से  ‘करो या मरो’ की प्रेरणा लेकर साथ ही साइक्लोस्टाइल मशीनें , तार काटने तथा पटरी उखाड़ने वाले औजार व पिस्तौले वेश बदलकर- बदलकर दमोह लेकर आए ,उनका उपयोग किया नमक आंदोलन में भाग लिया। अन्ततः  भारत माता की सेवा करते हुए 26 नव. 1980 को अपना निधन हो गया ।

3.श्री प्रेमचन्द्र कापड़िया - 

श्री प्रेमचंद कापड़िया का जन्म 1923 में श्री फूलचन्द जैन कापड़िया के यहाँ हुआ । आपके परिवार में कपड़े का व्यापार होने से आप लोग कापड़िया नाम से विख्यात थे । आप स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी रघुवर प्रसाद मोदी के विचारों से प्रभावित रहते थे । आप 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस में स्वयंसेवक के रूप में 21 दिन प्रशिक्षण प्राप्त किया । 

आप 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आन्दोलन में बम्बई गये थे । वहां आपने आजादी के लिए हो रहे विरोध  एवं क्रियाकलापों को देखकर प्रेरणा ली । अपने साथ वहां से विशेष जानकारी एवं सामग्री लेकर बीना मार्ग से  जबलपुर -दमोह आये , खूफिया पुलिस ने आपको जबलपुर के छोटे फुहारा पर बुलेटिन सहित गिरफ्तार कर लिए गये शेष सामग्री अपने ससुराल में छिपा दी । स्वयं जेल चले गए ।

 15- फरवरी 1943 को आप जेल से मुक्त हुए और आजाद हिन्द फौज में रहकर फौजी  का अभ्यास किया  और शांति सेना का गठन कर आन्दोलन संचालित किया। 

 4.श्री बाबूराम जैन पथरिया 

श्री बाबूराम जैन पिता बिहारी लाल जैन का जन्म 1918 में पथरिया , जिला- दमोह ( म.प्र . ) में हुआ। आप रसगुल्ला बेचते थे । आपने जंगल सत्याग्रह व 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में बढ़ - चढ़कर भागीदारी की और 2 माह 8 दिन का कारावास भोगा । साथ ही आपके भाई राजाराम उर्फ राजेन्द्र कुमार को 2 वर्ष 4माह का कारावास हुआ । 

5.श्रीबाबूलाल  जैन पथरिया 

 सन् 1896 में बाबूलाल जी का जन्म  पिता गिरधारी लाल जी के यहां हुआ । आपका विवाह कंछेदीलाल मास्टर  की बेटी तुलसी से हुआ और आप पथरिया ही रहने लगे थे ।  आपके वंशज सिंघई वंशीधर भी  मैहर रियासत  कोषाध्यक्ष रहे है । 


 आपने नमक आन्दोलन एवं 1930 के जंगल सत्याग्रह में 1 दिन की जेल के साथ 40/ - रुपये का जुर्माना हुआ । सन्1942 में मण्डल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में 14 अगस्त 1942 को भाषण देने के कारण सागर जेल भेजा गया साथ ही आपके ज्येष्ठ पुत्र पदमचंद्र को पर्चे बांटने के अपराध में पकड़ा गया । आपको सागर से नागपुर जेल भेजा गया । जहां पर सेठ गोविन्दास विनोबा भावे बृजलाल वियाणी , कुमारप्पा आदि से भेंट हुई , पुनः सागर जेल आए। 

4 जनवरी 1943 को सश्रम कारावास की सजा दी गई । कारावास मुक्त हुए और 1945 में ध्वज फहराते हुए फिर 15 दिन तक हिरासत में रखा गया । आजादी के बाद ग्राम पंचायत एवं जनपद पंचायत के पदों पर आसीन रहे । 16 मार्च 1983 को धार्मिक मरण को प्राप्त किया । 

6 श्री बाबूलाल पलंदी दमोह- श्री नाथूराम पलंदी के पुत्र श्री बाबूलाल पलंदी का जन्म 4 फरवरी 1920 को हुआ । आपने 12 वर्ष की उम्र में 1932 में जंगल सत्याग्रह में सहभागिता की  और अपने विद्यालय में ध्वज फहराने के कारण न्यायाधीश जगन्नाथ प्रसाद ने अदालत  समाप्ति तक की सजा दी । आपको इस कारण शासकीय विद्यालय से निकाला गया । 

केशरचंद पलंदी  आपके भाई थे । आपका विवाह बैनी बाई से हुआ । आपके  दाम्पत्य जीवन   में 6 पुत्रों  एवं 3 पुत्रियों  से परिपूर्ण था । आप श्री रघुवर प्रसाद मोदी जी से अत्यन्त ही प्रभावित थे। 1939 में त्रिपुरी काग्रेस में स्वयं सेवक के रूप में जुडकर 1941 में ब्रिटिश सरकार विरोधी सन्देशों को जन - जन तक पहुंचाने के अपराध में गिरफ्तार हुए । 13 अगस्त 1942 के आंदोलन में गिरफ्तार होने पर आपको सागर जेल फिर नागपुर जेल भेजा गया । 4 जून 1943 को रिहा हुए । 1941 से 1956 एवं  1969-1977 तक आप जिला कांग्रेस कमेटी के महामन्त्रीे अध्यक्ष  पद को संभाला  तथा कमला नेहरू कालेज के सचिव व स्वतंत्रता संग्राम सैनिक संघ दमोह के उपाध्यक्ष रहे । जैन प्रगतिशील परिषद एवं आदर्श  शिक्षा समिति के संस्थपक रहे  । आप  शिक्षा, राजनीति एवं समाजकार्य में अग्रणी रहे। सतत् सेवाप्रेमी पलंदी का  25 मार्च 1985 को देहावसान हुआ ।

7.अमर शहीद चौधरी भैयालाल -

 आप का जन्म बिहारी लाल जैन के घर सन् 1886 में दमोह मध्यप्रदेश में हुआ  आप बचपन से ही अपने नेतृत्व कौशल,संगठन कौशल और वाणी वव्यवहार और वे-वाक् राय के कारण सबके हृदय को मोह लेते थे । इन्हीं गुणों के कारण में दमोह कांग्रेस में सन् 1920-21 में अग्रणी रहे । 1908 के बंग- भंग से आप राजनीति में सक्रिय रहे फलस्वरूप आपने लोकमान्य  बाल गंगाधर तिलक को दमोह आमन्त्रित किया , ब्रिटिश सरकार ने सभा पर पाबन्दी लगा दी थी फिर भी आपने श्री दि ० जैन अतिशय क्षेत्र  कुण्डलपुर मेें सभा करायी ।

 प्रथम विश्व युद्ध की सैन्य भर्ती का विरोध किया , फलस्वरूप राजद्रोह का मुकदमा चला , ब्रिटिश सरकार मुकदमा हार गयी, रतौना में खुलने वाले बूचडखाने का विरोध ,विदेशी कपड़ों का बहिष्कार , अनशन आदि किया ।

सन् 1922 कलकत्ता कांग्रेस की बैठक से लौटते समय मिर्जापुर के आस - पास अंग्रेज सैनिकों के विवाद में गोली का शिकार हुए । 

8. श्री कपूरचन्द जैन चौधरी -

आपका परिचय चौ  धरी भैयालाल जी के भतीजे के रूप में प्राप्त होता है । आपके पिता का नाम श्री दरवारीलाल चौधरी था । आपका जन्म 16 अक्टू 0 1916 को दमोह में हुआ । परिवार में स्वयं के चाचा चौधरी भैया लाल जी- के देशप्रेम की कहानियां एवं भारत माता के प्रति समर्पण को सुनकर श्री कपूरचन्द जैन चौधरी में देश प्रेम का जज्वा देखने को मिलता था । आपने भी विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया ।

सन 1942 के आन्दोलन की आमसभा में गांधी चौक पर 14 अगस्त 1942 को भाषण देते हुए गिरफ्तार किया गया और जबलपुर जेल पहुंचा दिया गया वहां आपको नाना साहब गोखले , श्री के . देशमुख राजेन्द्र मालपाणी , छक्कीलालगुप्ता , जनरल आवारी जैसे नेताओं के दर्शन मिले । आपने 2 वर्ष 6 माह का कारावास की सजा भोग भारत माता की सेवा की ।

9 पं . कामता प्रसाद शास्त्री - जैनविद्वानों की परम्परा के संवर्द्धक , दमोह में पूर्णतः शराब बन्दी के सूत्रधार , राष्ट्रीय विचार धारा के पोषक, धर्मात्मा श्री कामता प्रसाद शास्त्री का जन्म श्री मूलचन्द्र जैन के यहां 1 जनवरी 1915 ई को हुआ । आपने कटनी बोर्डिंग एवं स्याद्वाद महाविद्यालय बनारस से अध्ययन किया । स्व. गणेश प्रसाद वर्णी संस्कृत विद्यालय मोरा जी सागर सेवाएं प्रदान की और 1942 के आन्दोलन में सहभागिता के कारण आपने अपनी सेवाएं समाप्त कर दीं । 

 आपके प्रयासों से सन् 1926 में दमोह का नाम विश्व पटल पर पूर्णतः ‘‘शराब बन्दी’’ के लिए प्रसिद्ध हुआ । शास्त्री जी ने शराबबंदी आंदोलन किया , दुकानें बंद करायी , नमक सत्याग्रह व जंगल सत्याग्रह किया . पुलिस द्वारा पकड़े गए ।

सन् 1932-33 में आप बनारस रहे और कान्तिकारी मन्मथनाथ गुरु से बम फेंकना , तैरना , पिस्तौल चलाना आत्मरक्षा एवं देश की सुरक्षा के लिए धर्मात्मा के अन्दर शस्त्र और शास्त्र का मणिकांचन संयोग घटित हुआ। आप कुछ दिन दिल्ली भी रहे । वहां से वापिस आकर आप को पिण्डरई में जंगल कटवाने, जैसी नगर में कोतवाली जलाने के प्रयास में 4 सितम्बर 1992 को गिरफ्तार कर लिया गया और सागर जेल में रहे वहां की दीवारों पर भारत माता के चित्र , तिरंगा के चित्र एवं देश भक्ति कविताएं सन्देशों को लिखते रहे । आपको जबलपुर जेल भेज दिया गया । । आप जेल से आने के बाद भी देश हितेषी आन्दोलनों में  सहभागिता दर्ज करते रहे 

10 श्री कुन्दल जैन- 

दमोह का नाम स्वतन्त्रता संग्राम में आगे करने वाले कुन्दन लाल जी जैन का जन्म सिंघई छोटेलाल जी के यहाँ हुआ । आपने 1930 से अपनी सक्रियता  स्वतन्त्रता संग्राम में दिखाई और 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में जबलपुर में सहभागिता की परिणामतः आपको 3 वर्ष 7 माह का कारावास मिला और 65 ति वर्ष की आयु में आपका स्वर्गवास हो गया ।

11.श्री रघुवरप्रसाद मोदी -

श्री रघुवरप्रसाद मोदीजी महान व्यक्तित्व के धनी , स्वतन्त्रता संग्राम के सशक्त हस्ताक्षर , दमोह नगर की पहचान , सामाजिक सांस्कृतिक शैक्षणिक संस्थाओं के संस्थापक खोजाखेडी ग्राम के  गल्ला व्यापारी श्री गोरेलाल जी की धर्मपत्नि सुखरानी के इकलौते पुत्र के रूप में आपका जन्म सन् 1894 ई में हुआ ।

1919 में मैट्रिक उत्तीर्णता के समय भारत में रौलट एक्ट एवं जलियावाला हत्याकाण्ड  की घोर निन्दा हो रही थी साथ ही इस घटना को लेकर सभी अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए आतुर थे । मोदी जी भी स्कूल की पढ़ाई त्याग आजादी की लड़ाई में कूद गये साथ ही आपके साथी प्रेमशंकर घगट , सिंघई गोकलचन्द्र वकील , दमोदरराव,श्री देवकीनन्दन श्रीवास्तव लक्ष्मीशंकर घगट आदि अनेक लोगों ने आपका साथ कन्धे से कंधा मिलाकर दिया ।

 1930 में खादी का कार्य आरंभ किया अंग्रेजों द्वारा आपकी दुकान जला दी गई विरोध करने पर गिरफ्तार कर लिया गया , जंगल कानून तोड़ने की योजना बनायी उसमें गिरफ्तारी दी , जंगल सत्याग्रह में साथ दिया , टाउन हाल में तिरंगा झण्डा फहराने के अभियोग  में गिरफ्तारी के साथ पिटाई खाई , गांधी चौक खून से लतपथ हो गया , कपड़े रक्त रंजित हो गये यह घटना 1942 की है , उन्हें सैन्य जूतों से निर्ममता से पीटा गया । बर्वरता से मारा गया तब भी रघुवरमोदी के मुंह में भारतमाता की जय का उद्घोष निकलता रहा । जनता भड़क उठी और प्रशासन ने उन्हें मुक्त कर दिया । स्वस्थ होने पर उन्हें गिरफ्तार  किया और 6 माह की जेल 500/ - रुपये जुर्माना लगाया आप की नेतृत्व क्षमता एवं सहनशीलता से सम्पूर्ण दमोह प्रभावित था ।

 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ और दमोह की जनता ने सन् 1952 - 1957 तक आपको विधायक पद पर  आसीन किया । आपने दमोह में शासकीय महाविद्यालय , राष्ट्रीय जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , कमलानेहरू महिला विद्यालय , जैनऔेषधालय अनेक संस्थाओं की स्थापना की । 1957 में कलेक्टर के द्वारा कम्युनिष्ट देह घोषित होने पर पुनः गिरफ्तार हुए । इस प्रकार देश और समाज की सेवा करते हुए 17 दिस . 1976 में आपने नश्वर देह त्यागी । 


  12. सिंघई रघुवर प्रसाद जुझार

गुमनाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी  सिंघई रघुवर प्रसाद जुझार वाले जिला अस्पताल दमोह के प्रथम दान दाता निर्माता रहे हैं। उनके सेवा भावी कार्यों को याद दिलाता एक शिलालेख जिला अस्पताल के प्रवेश द्वार की साइड में आज भी लगा हुआ है। जिसमें अंग्रेजी में प्रेजेंटेड बाय श्री रघुवर प्रसाद मालगुजार, दरबारी, ऑनरेविल मजिस्ट्रेट, चेयरमैन डिस्टिक काउंसिल आदि के उल्लेख के साथ डिप्टी कमिश्नर खान बहादुर द्वारा उद्घाटन किया जाना दर्ज है।


  उल्लेखनीय है कि वर्ष 1920 के दशक में फैली महामारी के बाद दमोह डिस्टिक काउंसिल के तत्कालीन चेयरमैन श्री सिंघई रघुवर प्रसाद ने 1922- 23 में जिला अस्पताल के नए भवन का निर्माण कराया था। 1931-32 में दमोह के जिले का दर्जा खत्म कर दिए जाने पर उन्होंने अपने सभी पदों से इस्तीफा देते हुए सुरक्षा के लिए प्राप्त बंदूक को वापस करने से इंकार कर दिया था। वही गांधीजी के बजाए भगत सिंह से प्रभावित होकर अंग्रेजों का खुला विरोध शुरू कर दिया था। अपने माल गुजारी क्षेत्र जुझार तथा आसपास के गांवों में लगान वसूली बन्द करा दी थी। बसूली को आने वाले अंग्रेज अफसरों कर्मचारियों को वह बन्दूक की नोक पर भगा देते थे। जिस बजह से अंग्रेजी हुकूमत ने उनकी बन्दूक को भी जब्त कर उनके रूतवे को कम करने की कोशिश की थी। लेकिन इसके बाद वह किसानों से लगान वसूली को आने वाले अंग्रेज अफसर तहसीलदार आदि के गांव पहुंचने पर ग्रामीणों से पकड़वाकर पेड़ से बंधवाकर कोड़ों से पिटवाते थे। जिसके बाद लगान वसूली करने के लिए जुझार तथा आसपास के क्षेत्र में जाने से अंग्रेज डरने लगे थे वही आसपास के क्षेत्र में भी लोगों ने लगान देना बंद कर दिया था।


महाराजा छत्रसाल के वंशजों के दरबारी होने की वजह से स्थानीय राजाओं से भी उनकी नहीं बनती थी। यही वजह रही की 10 जुलाई 1941 को हिंडोरिया मे राजा लक्ष्मण सिंह के तिलक समारोह के मौके पर अंग्रेजों के इशारे पर भोजन में जहर मिला कर श्री रघुवर प्रसाद को खिला दिया गया। बाद में इलाज के लिए दमोह भेजने के बजाय घोड़े की पीठ पर बांधकर उनको जुझार भेज दिया गया। जिससे उनकी असमय मौत हो गई थी। उस समय उनके इकलौते पुत्र सिंघई रतनचंद मात्र 4 वर्ष के थे। उनकी भी जान को खतरा होने से सिंघई जी की बेवा इंद्राणी बहू अपने बेटे को लेकर सब को छोड़कर मायके  जाने को मजबूर हो गई। देश की आजादी के बाद जब वह वापिस जुझार लौटी तो सब कुछ छिन चुका था। नावालिगी में दर्ज एक बगीचा जिसमें पुरानी हवेली व कुआ आदि था वही शेष बचा था।


इधर रघुवर प्रसाद की जहर देकर हत्या कराने में सफल रहे अंग्रेजों की दहशत के चलते सिंघई रघुवर प्रसाद का नाम लेने वाला भी कोई नहीं बचा था। यही वजह रही कि देश की आजादी के बाद अंग्रेजों के खिलाफ उनकी बगावत व जहर देकर हत्या के हालात गुमनामी के अंधेरे में खोकर रह गए। उनको और उनके योगदान को दस्तावेजों में भी कोई जगह नहीं मिल सकी। लेकिन शिलालेखों में उनका योगदान आज भी जीवित है। सिंघई रघुवर प्रसाद की दबंगई के संस्मरण को पुराने लोग आज भी याद करते हैं। अनेक वर्षों तक दमोह डिस्टिक काउंसिल के चेयरमैन रहे स्वर्गीय रघुवर प्रसाद सिंघई के अंग्रेजांे के खिलाफ दुस्साहस और जिला अस्पताल निर्माण में योगदान को ध्यान में रखकर 2 अक्टूबर 2014 को जिला अस्पताल के नवनिर्मित प्रवेश द्वार गेट का नामकरण सांसद श्री प्रहलाद पटेल की पहल पर श्री रघुवर प्रसाद के नाम पर किया गया था। और इसका लोकार्पण तत्कालीन कैबिनेट मंत्री जयंत मलैया ने किया था। वर्तमान में जब आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है ऐसे में भी यदि ऐसे गुमनाम शहीदों का स्मरण करके उनके बारे में जानकारी जुटाकर उन्हें याद नहीं किया जाता तो यह विडंबना ही होगी ।

13. गुलाबचन्द सिंघई 

 आपका जन्म सिंघई राजाराम के यहाँ सन् 1923 में दमोह मप्र में हुआ । आपने माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की और विद्यार्थी जीवन से ही आप समाज और राष्ट्रª हित में सक्रिय रहते थे। सन् 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में अपनी भूमिका के कारण जबलपुर और सागर में 9 माह 10 दिन का कारावास तथा 50  - रुपये का अर्थदण्ड भारत माता के प्रसाद स्वरूप स्वीकार किया था । 

14. श्री गोकुलचन्द्र सिंघई 

गोकुल चन्द सिंघई एक ऐसा नाम जो वकालत के क्षेत्र में पारंगत , कुशाग्र बुद्धि हाजिरजबाब और देश प्रेम में लाजबाब थे । आप पर अमरशहीद भैयालाल जी का अत्यंत प्रभाव था । आपने उन्हीं के सान्निध्य में खादी आश्रम , गौरक्षा , शराबबंदी जैसे कार्यों को सक्रियता के साथ किया । आप आत्मरक्षा और राष्ट्र रक्षा के लिए शौक से अखाड़े चलाते थे । फलस्वरूप आपने दमोह के समस्त अखाड़ों को संगठित कर एक संगठन बनाया और दशहरा महोत्सव प्रारंभ कराया । 

सन् 1916 में अंग्रेज पुलिस कप्तान ने दमोह जेल के सामने से बैलगाड़ियों के निकलने पर प्रतिबन्ध लगाया । जिसके लिए सिंघई जी ने आम सभाएँ की और विरोध किया । फलस्वरूप पुलिसकप्तान ने आपको मारने एक अपराधी को रिहा किया पर वह प्रयास विफल रहा । अंततः बैलगाडियां निकलने लगी । 

सन् 1931 में आपको ब्रिटिश विरोधी नीतियों के विरोध में गिरफ्तार कर रायपुर जेल भेजा गया और 1933 में 58 वर्ष की उम्र में आपका निधन हो गया ।

 15.श्री चिन्तामन जैन 

श्री चिन्तामन जैन , पुत्र- श्री दशरथ लाल जैन का जन्म दमोह ( म 0 प्र 0 ) जिले के पटेरा के निकट बमनपुरा ग्राम में 1913 में हुआ । आपकी रुचि देश - सेवा एवं सामाजिक कार्यों में बचपन से ही रही , अतः आप घूम - घूमकर देश को स्वतंत्र कराने की भावना लोगों में जागृत करते रहे । सोलह वर्ष की उम्र में ही आप भारतीय अधिनियम की धारा 379 आई ० पी ० सी ० के अन्तर्गत दिनांक 4-9-1930 से 3-1-1931 तक केन्द्रीय जेल जबलपुर में रहे । इन्द्राणी बाई से आपका विवाह हुआ था ।  जेल से छूटने के बाद आपका जीवन जबेरा जनपद के ग्राम  कठई सगरा में  सिंघई गुलाबचन्द एवं उनके पुत्र सिंघई रतनचन्द आदि के साथ राष्ट्र हितैषी कार्य करते-करते आपने अन्तिम सांस ली । 



 16. श्री डाल चन्द जैन

 आपका जन्म सन् 1915 में श्री नन्दीलाल जैन दमोह के यहां हुआ । राष्ट्रीय भावना के प्रभाव से 15 वर्ष की आयु में जीवन पर्यन्त देश की स्वतन्त्रता के कृत संकल्पित थे।  आप रघुवर प्रसाद मोदी की सभाओं झण्डा लेकर राष्ट्रीय गान गाया करते थे। आप 1949 के त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में सपत्नीक रहे । आपने दमोह की रोड पर एक माह लगातार परेड की जिसे देखकर लोग देशप्रेम की प्रेरणा लिया करते थे । 

1940 में दिल्ल्ी चलो आन्दोलन,1942 का करो या मरो आन्दोलन में सहभागिता दर्ज की । 19 अगस्त 1942 को सभा के मध्य से आपको गिरफ्तार किया गया और 24. जुलाई 1966 को आपका निधन हो गया । 

17. श्री पूरनचन्द जैन- 

पूरनचंद जी का जन्म श्री हजारीलाल जी के यहाँ सन 1916 में हुआ । 23 वर्ष की उम्र में त्रिपुरी कांग्रेस में अनेक युवकों के साथ स्वयंसेवक बनकर स्वतन्त्रता संग्राम में अपना अवदान दिया । आपको 4 सितम्बर 1942 को गिरफ्तार करके 7 माह 14दिन के कारावास के लिए सागर जेल भेजा गया । रिहा होकर कांग्रेस का कार्य करते रहे । 

18.सिंघई रतनचन्द जैन 

आपका जन्म गुलाबचन्द्र सिघई के यहाँ सन् 1918 में हुआ। आपको राष्ट्रीय भावना के संस्कार ा अपने पिताजी से मिले थे । पिता जी की मालगुजारी बांदकपुर एवं बनवार में भी । आपका राजनैतिक जीवन 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन से प्रारंभ हुआ । आपको 11 अगस्त 1942 को गिरफ्तार किया गया और दमोह से सागर जेल और सागर से नागपुर जेल भेज दिया । 10 माह 20 दिन का कारावास अमरावती में मासूम अली जेलर के कुशासन में अनेक यातनाएं सहन करके काटा । 

19. श्री राजाराम उर्फ राजेन्द्र कुमार जैन - 

श्री राजाराम अपने भाई श्री बाबूराम जी के साथ झोली  में चना जोर गरम बोलकर  चना बेचते थे । आपका जन्म 1906 में पथरियादमोह  में हुआ ।

  1942 के आन्दोलन में आप अपने छोटे भाई के साथ पकडे गए और 2 वर्ष 4 माह का कारावास , मिला । सन् 1973 में आपका निधन हो गया ।

20. राजाराम बजाज  -

 श्री लोकमन बजाज के चतुर्थ पुत्र श्री राजाराम बजाज का जन्म सन 1900 में हुआ। आपको युवावस्था से ही राष्ट्रप्रेम था जो कि आपके पड़ोसी गोकुलचंद वकील की प्रेरणा एवं सहयोग से पनपा था।   । आपने चौधरी भैयालाल के चरखा प्रचार आन्दोलन को सम्भाला साथ ही 15000/ - नुकसान भी उठाया । 

आपने युवावस्था से ही राष्ट्र हित की प्रभात फेरियां , गौरक्षा आन्दोलन , विदेशीमाल एवं का शराब की दुकानों का बहिष्कार, विदेशी शिक्षा बहिष्कार आन्दोलनों में सक्रिय रहें  और आपने व्यायाम शौकीन होने के कारण देश रक्षा के हितार्थ  दमोेह के मुहल्लों एवं ग्रामीण अंचल में बाहुबली व्यायाम शालाएँ खुलवाई तथा जिसका मुख्य केन्द्र जैन धर्मशाला के आंगन में अपने खर्च  पर बाहुबली व्यायाम शाला बनवाई । जिसमें प्रेमचंद उस्ताद का सहयोग भी आपको प्राप्त हुआ 

 1930 के आंदोलन में 4 माह की सजा 80 रु अर्थदण्ड, 1942 के आंदोलन में अपने भतीजे रूप - चंदबजाज को 9 माह 15 दिन के लिए जेल भेजा  और आप  स्वयं भूमिगत रहकर लीलाधर सर्राफ के सहयोग से  जेल गए परिवारों की सहायता करते रहे ।  आप 30 वर्षों तक श्री दि - जैन सिद्धक्षेत्र अलपुर कमेटी अध्यक्ष रहे । 

21.श्री रूपचंद बजाज -

जैन धर्म के प्रगाढ. श्रद्धानी एवं समाज में प्रतिष्ठित श्रीदुलीचंद्र जी के यहां सन् 1912 में श्री रूपचंद बजाज का जन्म हुआ । आपको स्वतन्त्रता संग्राम में आगे आने की प्रेरणा स्वयं के चाचा श्री राजाराम बजाज से मिली।  बाहुवली व्यायाम शाला में आत्मरक्षा के हुनर सीखे और शरीर को बलशाली बनाया 

1942 में सागर जेलर ने कहा कि-  बलशाली बना था । आज हमारी जेल में सबसे बजनदार केंदी आया है ।

 आपने खादी का प्रचार , विदेशी वस्तुओं एवं शिक्षा का बहिष्कार,शराबबंदी आन्दोलनों में भागीदारी की । 1930 में आप त्रिपुरी कांग्रेस से जुड़े 21दिन वहां रुके । 

 17 अगस्त 1942 को गांधी चौक से गिरफ्तार हुए सागर जेल से नागपुर जेल पुनः सागर जेल 16.03.1943 को  3 माह के कठार कारावास के लिए अमरावती जेल भेजा गया वहां मासूम अली क्रुर निर्दयी जेलर की अमानवीय यातनाऐ सहन की।  जून -43 में आप रिहा हुए । वहां से मुक्तागिरि जैन सिद्धक्षेत्र के दर्शन कर दमोह वापिस आए और समाज कार्य और शैक्षणिक गतिविधियों में संलग्न रहे 7जनवरी1988 को  धर्म ध्यान पूर्वक आपका निधन हो गया । 

22. श्री रामचरण जैन दमोह-

 श्री रामचरण जैन  का जन्म दमोह के नन्हेंलाल जी के यहां सन् 1923 में हुआ । 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया । जेल यात्रा की तथा पराधीनता की कठोर यातनायें सहीं । शासन ने सम्मान पत्र प्रदान कर आपको सम्मानित किया है ।

23. सवाई सिंघई रूपचंद जैन -

 अपनी निस्पृहता , उदारता , सरलता व स्वाभिमान के लिए पूरे क्षेत्र में विख्यात पटेरा , जिला - दमोह ( म 0 प्र 0 ) के सवाई सिंघई रूपचंद जैन , पुत्र - श्री रतनचंद जैन का जन्म 1917 में हुआ । ओरछा सेवा संघ , देशी राज प्रजा परिषद् आदि से जुड़े रहे रूपचंद जी ने जबलपुर के त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया था । 1942 के आन्दोलन में पुलिस काफी प्रयत्न के बाद भी गिरफ्तार नहीं कर सकी । भूमिगत रहकर श्री जैन ने स्वतंत्रता की अलख जगाई । अपनी निस्पृह वृत्ति के कारण सरकार से मिलने वाली तमाम सुविधाओं को उन्होंने तिलाञ्जलि दे दी । सिंघई जी ने श्री दि ० जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर के विकास में महनीय योगदान दिया था । पटेरा को विकासखण्ड बनवाने तथा हाईस्कूल , बैंक आदि की स्थापना में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी । 1994 में आपका निधन हो गया ।

24. नगर सेठ श्री लालचंद  जैन-

 राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वाले ‘पहले देश- फिर समाज’ के सिद्धांत को अपनाने वाले थे । श्री लालचंद जैन ऐसे ही व्यक्तित्व थे । वे जहाँ राष्ट्रीय आन्दोलन में जेल गये , वहीं उन्होंने जैन संस्थाओं को भी भरपूर दान दिया । शुभ्र खादी का कुर्ता , बंद गले का कोट और ऊँची पट्टी की खादी की टोपी लगाये सेठ लालचंद जी प्रायःदमोह की हर सामाजिक सभा में सभापति बने दिखायी देते थे । जब जनता कांग्रेस की सभाओं में आने से भी डरती थी और मजाक उड़ाती थी । तब भी सेठ साहब तखत पर बैठे भाषण देते रहते थे । आपका जन्म दमोह ( म ० प्र ० ) के सुप्रसिद्ध सेठ घराने में पिता श्री नाथूराम जी के यहाँ हुआ था । धार्मिक , सामाजिक एवं राजनीतिक सभी क्षेत्रों में आप निपुण थे और सिद्धान्त के पक्के थे । सरकार के खिलाफ महात्मा गांधी ने जब असहयोग आन्दोलन चलाया , तब उसमें आपका विशेष योगदान रहा , तभी आप जेल भी गये । बाद में आप जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने । आपके पूर्वजों ने श्री कुण्डलपुर जी , श्री नैनागिरि जी एवं दमोह में मन्दिरों का निर्माण कराकर पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ गजरथ भी चलवाये थे । सेठ लालचंद जी धार्मिक अनुष्ठानों में नियम से भाग लेते थे । श्री सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर के अध्यक्ष पद पर 15 वर्षों तक रहकर आपने क्षेत्र की सेवा की

 । आपके सहयोग से दमोह जिला में कई संस्थायें चल रही हैं । आपने श्री वर्णी दि ० जैन पाठशाला को 60 एकड़ भूमि देकर उसके सञ्चालन में लाखों रुपयों का दान दिया था । पूज्य श्री वर्णी जी महाराज ,  जिन्होंने आजादी  के लिए अपनी चादर भी दे दी थी ,के दमोह पदार्पण के समय आपने उनके उपदेशों से प्रभावित होकर उस समय एक मुस्त 50 हजार रुपये का दान दिया था । आपकी धर्मपत्नी भी उदार एवं दानशीला थीं । श्री सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर की 20 एकड़ जमीन , जो फतेपुर के बगीचे के नाम से जानी जाती है , को आपने ही दान में दिया था । उस बगीचे से क्षेत्र को है आज भी हजारों रुपयों की वार्षिक आमदनी है ।

 25. श्री लीलाधर सराफ -

व्यायाम के शौक ने जिन्हें आजादी का दीवाना बना दिया , ऐसे श्री लीलाधर सराफ , पुत्र श्री मल्थूराम सराफ का जन्म दमोह ( म 0 प्र 0 ) में 1895 में हुआ । आपने जैन और अजैन सभी को श्री बाहुबली व्यायाम शाला का सदस्य बनाया । यहाँ तक कि श्री गजाधर प्रसाद मास्टर को प्रेरणा देकर लाठी , लेजिम , तलवार , भाला , पटा , बनेटी और मलखम्म के खेल  सीखने के लिए श्री हनुमान व्यायाम शाला  अमरावती भिजवाया और लौटने पर बाहुबली व्यायाम शाला के सभी सदस्यों और अपनी लड़की सहित बहुत - सी से लड़कियों को लेजिम आदि की ट्रेनिंग दिलवायी । 

1942 के आन्दोलन में आपने बाहुबली व्यायाम शाला के सदस्यों को झौंक दिया । बहुत से पकड़े थे गये और बहुत से छिपकर बुलेटिन छापने का काम इनके निवासस्थान पर करते रहे । परन्तु पुलिस को इसकी अंत तक भनक भी न हुई । दमोह में होने वाले अनेक क्रांतिकारी कार्यों का सञ्चालन आपके निवासस्थान से ही होता था । आपका कार्य पुलिस से मिलकर रहना और यह पता लगाना था कि आज किसके पकड़े जाने की आशा है व कहाँ तलाशी होने वाली है । जो सेनानी जेल चले जाते , उनके घरों की खान - पान सहायता की जिम्मेदारी श्री प्रेमचंद उस्ताद  के साथ श्री लीलधर सराफ और श्री राजाराम बजाज की ही रहती थी । क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण म 0 प्र 0 शासन ने आपको स्वतंत्रता सैनानी का ताम्रपत्रादि प्रदान कर सम्मानित किया था । 2-8-80 को आपका निधन हो गया ।

26.श्री शंकरलाल जैन- 

दमोह ( म 0 प्र 0 ) के श्री शंकरलाल जैन का जन्म 1921 में हुआ । आपके पिता का नाम श्री भैयालाल था । आपने प्राथमिक तक शिक्षा ग्रहण की । त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन में स्वयंसेवक के रूप में तथा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया एवं अर्थदण्ड पाया ।

27. श्री शिवप्रसाद सिंघई -

 दमोह के प्रसिद्ध सिंघई परिवार का राष्ट्रीय आन्दोलन में अग्रगण्य स्थान है । इस परिवार के श्री सिंघई गोकुलचंद वकील , सिं ० गुलाबचंद , सिं ० शिवप्रसाद , सिं ० रतनचंद जी जेल गये । सिं ० गुलाबचंद के पुत्र सिंघई शिवप्रसाद का का जन्म 29-5-1921 को हुआ । आप माध्यमिक शाला में अध्ययनरत थे कि दमोह में महात्मा गांधी का आगमन हुआ । छात्र शिवप्रसाद भाषण सुनने चला गया । फिर क्या था - हेडमास्टर ने बेतों से पीटा और स्कूल से बाहर निकाल दिया और यहीं समापन हो गया सिंघई जी की शिक्षा का । 

आप नमक सत्याग्रह के अवसर पर वानर सेना में शामिल रहे । कांग्रेस कार्यालय में सचिव पद पर भी आपने कार्य किया । 1942 में आपके छोटे भाई सिंघई रतनचंद को पकड़ा गया तो आप भूमिगत हो गये । घर की तलाशी ली गई , जब ये न मिले तो इनके पिता सिं ० गुलाबचंद जी को पुलिस पकड़कर ले गई । दिनांक 1-10-1942 को शिवप्रसाद जी पकड़ लिये गये । बदले में पिता गुलाबचन्द जी को छोड़ दिया गया । शिवप्रसाद जी को 5 माह , 5 दिन की सजा दी गई और सागर जेल में रखा गया । सजा पिूरी होने पर दि ० 16-3-1943 को छोड़ दिया गया ।


 28. साबूलाल कामरेड-  जन्म पथरिया , जिला- दमोह ( म ० प्र ० ) में दिनांक 14-9-1922 को श्री अनन्तराम जी के यहाँ हुआ । 1939 में आप दमोह जिला कांग्रेस कार्यालय में कार्य करने लगे , जिसमें डुंडी पीटने से लेकर दफ्तर का पूरा कार्य आपने संभाला । 1939 में त्रिपुरी अधिवेशन में तीन हफ्ते स्वयंसेवक बनकर रहे । साथ ही जैन सेवादल से जुड़ गये तथा सामाजिक कार्यों में भी भाग लेने लगे एवं श्री साबूलाल कामरेड़ हँसमुख स्वभावी श्री साबूलाल जैन कामरेड़ दि 0 11 अगस्त , 1942 को आप जुलूस का नेतृत्व करते हुए पकड़े गये , मुकदमा चला तथा 50/  - जुर्माना की सजा हुई । पुत्र को छुड़ाने के लिए अनन्तराम जी ने बंजी ( घोड़ा आदि पर सामान बांध कर गांव - गांव बेचने का काम ) करने का घोड़ा बेच डाला , परन्तु गांधी चौक की आम सभा का डिक्टेटर बनकर भाषण देते हुए आप फिर पकड़ लिये गये तथा सागर जेल में 7 माह नजरबन्द रहे , बाद मुकदमा चला तथा तीन माह की सजा दी गई ।

29.श्री साबूलाल जैन-  स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण शिक्षक पद से निलम्बित किये गये , दमोह ( म 0 प्र 0 ) के श्री साबूलाल जैन , पुत्र - श्री सुखलाल जैन का जन्म 1906 में हुआ । अल्पवय में ही आप 1921 से स्वतंत्रता संग्राम में जबलपुर में सक्रिय हो गये । विदेशी वस्त्र बहिष्कार तथा 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में आपने भाग लिया । आपने अध्यापन और प्रशिक्षण प्राप्त किया और शिक्षक बन गये । शिक्षण कार्य करते हुए भी जेल क्रांतिकारियों को सामग्री पहुँचाते रहे और प्रचार साहित्य का वितरण किया । राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने के कारण शिक्षक पद से आपको निलम्बित कर दिया गया था ।

30 श्री प्रेमचंद विद्यार्थी -श्रीमान प्रेम चंद जी जैन विद्यार्थी का जन्म ग्राम कुआं खेड़ा जिला दमोह 15 जनवरी 1936 को श्री कार्य लाल जी जैन के यहां होगा आपने अपने जीवन में शिक्षा को महत्व देते हुए महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में काव्य पत्रकारिता एवं भाषण तथा स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित साहित्य को प्रकाशित करके सहयोग किया और इसी सहयोग के कारण ब्रिटिश सरकार ने आपको गिरफ्तार करने की कई बार कोशिश की लेकिन आप भूमिगत रहे और चुप करके आपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवारों का भरण पोषण और उनके भोजन पानी और सुरक्षा की व्यवस्था करते रहे ब्रिटिश सरकार आप को गिरफ्तार नहीं कर पाई और आपका देहांत 2021 में हुआ

उपरोक्त सेनायियों के अतिक्ति भी अनेक गुमनाम सेनानी रहे हैं जिन्हांेेने इन सबका किसी ना किसी रूप में अपना सहयोग किया होगा उनकी खोज करना अत्यन्त आवश्यक है । हमें इनके त्याग बलिदान,समर्पण से बहुत कुछ सीखना चाहिए । 

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