*हवन का महत्व*
फ्रांसके ट्रेले नामक वैज्ञानिकने हवनपर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यत:
आमकी लकड़ीपर किया जाता है ।
जब आमकी लकड़ी जलती है तो फार्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओंको मारती है तथा वातावरणको शुद्ध करती है। इस रिसर्चके बाद ही वैज्ञानिकोंको इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।
गुड़को जलानेपर भी यह गैस उत्पन्न होती है। टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गई अपनी रिसर्चमें पाया कि यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाए अथवा हवन के धुंए से शरीरका संपर्क हो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फैलानेवाले रोगाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।
हवनकी महत्ताको देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की कि क्या वाकई में हवनसे वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणुओंका नाश होता है? उन्होंने ग्रंथोंमें वर्णित हवन सामग्री जुटाई और इसे जलानेपर पाया कि ये विषाणुओंका नाश करती हैं और फिर उन्होंने विभिन्न प्रकारके धुंए पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी एक किलो जलाने पर हवामें मौजूद विषाणुं बहुत कम नहीं हुए। पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डालकर जलाई गई तो एक घंटेके भीतर ही कक्षमें मौजूद नैगेटिव बैक्टीरिया का स्तर 94 प्रतिशत तक कम हो गया। यही नहीं उन्होंने आगे भी कक्षकी हवामें मौजूद जीवाणु
ओंका परीक्षण किया और पाया कि कक्षके दरवाजे खोले जाने और सारा धुंआ निकलने के 24 घंटे बाद भी बैक्टीरियाका स्तर सामान्यसे 96 प्रतिशत कम था। बार-बार परीक्षण करनेपर ज्ञात हुआ कि इस एक बार हुएका असर एक एक माह तक रहा और उस कक्षकी वायुमें विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्यसे बहुत कम था यह रिपोर्ट एथ्नोफार्मोकोलॉजी के शोधपत्रमें दिसंबर 2007 में छप चुकी है रिपोर्ट में लिखा गया की हवन सामग्रीके द्वारा न केवल मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलोंको नुकसान पहुंचानेवाले बैक्टीरियाका भी नाश होता है जिससे फसलोंमें रसायनिक खादोंका प्रयोग कम हो सकता है।
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