*🤔 क्या महिलाएं भगवान की प्रतिष्ठित मूर्तियों एवं दिगम्बर जैन साधुओं के पैर छू सकती है ❓*
*📖मूलाचार की गाथा संख्या १९५ में स्पष्ट उल्लेख है कि*
*आर्यिकाएं*
*➡️ आचार्य को पांच हाथ से दूर रहकर*
*➡️ उपाध्याय को छह हाथ से दूर रहकर*
*➡️ साधु को सात हाथ से दूर रहकर*
गवासन से ही वंदना करती हैं
*इसी गाथा के ऊपर आचारवृत्ति टीका में लिखा है कि*
➡️आर्यिकाएं आचार्य के पास आलोचना करती हैं अतः उनकी वंदना के लिए पांच हाथ के अंतराल से गवासन से बैठ कर नमस्कार करती हैं। ऐसे ही उपाध्याय के पास अध्ययन करना है अतः उन्हें छह हाथ के अंतराल से नमस्कार करती हैं तथा साधु की स्तुति करनी होती है अतः वे सात हाथ के अंतराल से उन्हें नमस्कार करती हैं, *अन्य प्रकार से नहीं।* यह क्रम भेद आलोचना, अध्ययन और स्तुति करने की अपेक्षा से हो जाता है।
➡️अगर महिलाओं का साधु के पैर छूना आगम सम्मत होता तो आर्यिकाएं जो कि उपचार से महाव्रती है और ब्रह्मचर्य की धारक हैं उनको इतने हाथों की दूरी से वंदना करने को क्यो लिखा मूलाचार में यह विचारणीय है।
*➡सामान्य महिलाएं तो आर्यिकाओं से निश्चित ही व्रत, संयम और भावों की शुद्धि में कम ही होती है फिर यदि आर्यिकाओं तक को साधुओं के पैर छूकर नमस्कार करने की अनुमति मूलाचार में नहीं दी है तो सामान्य महिलाओं को तो अवश्य ही दूर से साधुओं को नमस्कार आदि करना चाहिए*
➡️कुछ पंथवादी लोगों ने तर्क दिया कि आचार्य आर्यिका दीक्षा के समय दीक्षार्थी महिलाओं को छूते हैं तो फिर महिला साधुओं के पैर भी छू सकती है❗
➡️आर्यिका दीक्षा की विधि में आचार्य का प्रयोजन केवल दीक्षा देने का होता है और यह दीक्षा बिना छूए ऊपर से केवल संस्कार के लिए लौंग सर पर डालकर भी की जा सकती है। आर्यिका के सर पर साथिया बनाना और केश लोंच अन्य गणिनी आर्यिका भी कर सकती है फिर आचार्य को दीक्षार्थी महिलाओं को छूने की आवश्यकता नहीं पड़ती
➡ ज्ञात रहे साक्षात भगवान के १८००० शील होते ही हैं और जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा में दीक्षा के सारे संस्कार किए जाते हैं जिसमें ब्रह्मचर्य महाव्रत का संस्कार भी होता है और जिसमें १८००० शील भी आरोपित होते हैं जो स्त्री संसर्ग की अपेक्षा शील के भेद हैं सो ही बताते हैं
*📖 मूलाचार के शीलगुणाधिकार की गाथा संख्या १०४२ के ऊपर विशेष अर्थ* में स्त्री की अपेक्षा शील का वर्णन करते हुए लिखा है
तीन प्रकार की स्त्री (देवी, मानुषी, तिर्यांचीनी)
३ ❎योग ३ ❎ कृत करीत अनुमोदना ३ ❎
संज्ञाएँ ४ ❎ इन्द्रियाँ १० (भवेन्द्रियाँ ५ +
द्रव्येन्द्रियाँ ५) ❎ कषाय १६ इन सबको गुणा करने पर १७२८० भेद होते हैं।
इनमे अचेतन स्त्री सम्बन्धी ७२० भेद जोड़ दे अर्थात अचेतन स्त्री ( काष्ठ पाषाण चित्र)३ ❎ मन काय २
योग ❎ कृत कारित अनुमोदित
३ ❎ कषाय ४ ❎ इन्द्रिय भेद १० ये सब परस्पर गुणा करने पर ७२० भेद हुए
कुल मिलाके स्त्री की अपेक्षा भगवान् में १८००० शीलों का सद्भाव होता है
*📖मूलाचार गाथा संख्या ८ पर आचारवृत्ति टीका में ब्रह्मचर्य महाव्रत का वर्णन करते हुए लिखा है कि*
वृद्धा, बाला और युवती इन तीन प्रकार की स्त्रियों को और उनके प्रतिरूप (चित्र) को माता, पुत्री और बहन के समान समझकर एवं देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी स्त्रियों के रूप देखकर उनसे विरक्त होना यह ब्रह्मचर्य महाव्रत है।
*➡️ टीका में स्त्रियों के मृदु स्पर्श का त्याग करना ऐसा स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है*
*📖 मूलाचार मूलगुणाधिकार की गाथा संख्या ८ की आचार वृत्ति टीका* में देव मनुष्य और तिर्यंच स्त्रियों से विरक्त रहना एवं स्त्रियों के स्पर्श का त्याग करना ये सब ब्रह्मचर्य महाव्रत में आया है
*📖 भगवती आराधना गाथा संख्या ८७३ की टीका* में स्त्रियों के शरीर से स्पर्श या उनके शरीर से सम्बद्ध वस्तुओं का स्पर्श भी अब्रह्म का प्रतीक माना है तब क्या स्त्रियाँ पञ्च परमेष्ठियों को स्पर्श कर सकती हैं ❓
*📖 कर्त्तिकेयानुप्रेक्ष गाथा संख्या ४०२* में भी स्त्री की अपेक्षा शील के १८००० भेदों की चर्चा आती है जिसकी टीका में लिखा है स्त्रिमात्र का चाहे वह देवांगना हो या मानुषी हो अथवा पशुयोनि हो संसर्ग जो छोड़ता है, उनके बीच में उठता बैठता नहीं है तथा उनके रूप को नहीं देखता उनका मन वचन काय कृत कारित अनुमोदना से ९ प्रकार का ब्रह्मचर्य होता है
*👉🏼 सोचो जो स्त्रियाँ साधुओं अथवा प्रतिमाओं को छूती हैं वो उनके ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष लगाकर कितना पाप कमा लेती हैं❗*
*👉🏼 ये भी विचारणीय तथ्य है की स्त्री द्वारा भगवान के अभिषेक को जो आगम सम्मत मानते हैं और वही स्त्रियाँ भगवान को छूती हैं, चन्दन लेपन करती हैं तथा अभिषेक के बाद कपड़े से भगवान का प्रक्षाल (सभी अंगों को पोछना) करती हैं तब ये ब्रह्मचर्य महाव्रत की अपेक्षा और १८००० शीलों की अपेक्षा भगवान को छूकर कितना पाप कमा रही हैं❗*
*👉🏼 सोचे जिस स्त्री के संसर्ग को छोड़ने को कहा है क्या स्त्रियाँ ऐसे पञ्च परमेष्ठी को छूकर उनके ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष नहीं लगा रही ❓*
*➡विगत कुछ वर्षों से समाज में व्यभिचार के मामले काफी बढ़ने लगे हैं यह भी एक बड़ा कारण है कि महिलाओं को दूर से ही साधुओं को नमस्कार आदि करना चाहिए अन्यथा ऐसे बढ़ते मामलों से समाज की और साधुओं की ही बदनामी होती है।*
*➡सलग्न मूलाचार की गाथा संख्या ८ एवं १९५ की फ़ोटो अवश्य देखें*
*➡सलग्न वर्तमान के एक सुप्रसिद्ध आर्षमार्ग के आचार्य की महिलाओं द्वारा किया गया पाद प्रक्षालन की फ़ोटो भी देखें और सोचे कि क्या उपरोक्त आगम प्रमाण के अनुसार यह उचित है या नहीं❗*
*📖मूलाचार की गाथा संख्या १९५ में स्पष्ट उल्लेख है कि*
*आर्यिकाएं*
*➡️ आचार्य को पांच हाथ से दूर रहकर*
*➡️ उपाध्याय को छह हाथ से दूर रहकर*
*➡️ साधु को सात हाथ से दूर रहकर*
गवासन से ही वंदना करती हैं
*इसी गाथा के ऊपर आचारवृत्ति टीका में लिखा है कि*
➡️आर्यिकाएं आचार्य के पास आलोचना करती हैं अतः उनकी वंदना के लिए पांच हाथ के अंतराल से गवासन से बैठ कर नमस्कार करती हैं। ऐसे ही उपाध्याय के पास अध्ययन करना है अतः उन्हें छह हाथ के अंतराल से नमस्कार करती हैं तथा साधु की स्तुति करनी होती है अतः वे सात हाथ के अंतराल से उन्हें नमस्कार करती हैं, *अन्य प्रकार से नहीं।* यह क्रम भेद आलोचना, अध्ययन और स्तुति करने की अपेक्षा से हो जाता है।
➡️अगर महिलाओं का साधु के पैर छूना आगम सम्मत होता तो आर्यिकाएं जो कि उपचार से महाव्रती है और ब्रह्मचर्य की धारक हैं उनको इतने हाथों की दूरी से वंदना करने को क्यो लिखा मूलाचार में यह विचारणीय है।
*➡सामान्य महिलाएं तो आर्यिकाओं से निश्चित ही व्रत, संयम और भावों की शुद्धि में कम ही होती है फिर यदि आर्यिकाओं तक को साधुओं के पैर छूकर नमस्कार करने की अनुमति मूलाचार में नहीं दी है तो सामान्य महिलाओं को तो अवश्य ही दूर से साधुओं को नमस्कार आदि करना चाहिए*
➡️कुछ पंथवादी लोगों ने तर्क दिया कि आचार्य आर्यिका दीक्षा के समय दीक्षार्थी महिलाओं को छूते हैं तो फिर महिला साधुओं के पैर भी छू सकती है❗
➡️आर्यिका दीक्षा की विधि में आचार्य का प्रयोजन केवल दीक्षा देने का होता है और यह दीक्षा बिना छूए ऊपर से केवल संस्कार के लिए लौंग सर पर डालकर भी की जा सकती है। आर्यिका के सर पर साथिया बनाना और केश लोंच अन्य गणिनी आर्यिका भी कर सकती है फिर आचार्य को दीक्षार्थी महिलाओं को छूने की आवश्यकता नहीं पड़ती
➡ ज्ञात रहे साक्षात भगवान के १८००० शील होते ही हैं और जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा में दीक्षा के सारे संस्कार किए जाते हैं जिसमें ब्रह्मचर्य महाव्रत का संस्कार भी होता है और जिसमें १८००० शील भी आरोपित होते हैं जो स्त्री संसर्ग की अपेक्षा शील के भेद हैं सो ही बताते हैं
*📖 मूलाचार के शीलगुणाधिकार की गाथा संख्या १०४२ के ऊपर विशेष अर्थ* में स्त्री की अपेक्षा शील का वर्णन करते हुए लिखा है
तीन प्रकार की स्त्री (देवी, मानुषी, तिर्यांचीनी)
३ ❎योग ३ ❎ कृत करीत अनुमोदना ३ ❎
संज्ञाएँ ४ ❎ इन्द्रियाँ १० (भवेन्द्रियाँ ५ +
द्रव्येन्द्रियाँ ५) ❎ कषाय १६ इन सबको गुणा करने पर १७२८० भेद होते हैं।
इनमे अचेतन स्त्री सम्बन्धी ७२० भेद जोड़ दे अर्थात अचेतन स्त्री ( काष्ठ पाषाण चित्र)३ ❎ मन काय २
योग ❎ कृत कारित अनुमोदित
३ ❎ कषाय ४ ❎ इन्द्रिय भेद १० ये सब परस्पर गुणा करने पर ७२० भेद हुए
कुल मिलाके स्त्री की अपेक्षा भगवान् में १८००० शीलों का सद्भाव होता है
*📖मूलाचार गाथा संख्या ८ पर आचारवृत्ति टीका में ब्रह्मचर्य महाव्रत का वर्णन करते हुए लिखा है कि*
वृद्धा, बाला और युवती इन तीन प्रकार की स्त्रियों को और उनके प्रतिरूप (चित्र) को माता, पुत्री और बहन के समान समझकर एवं देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी स्त्रियों के रूप देखकर उनसे विरक्त होना यह ब्रह्मचर्य महाव्रत है।
*➡️ टीका में स्त्रियों के मृदु स्पर्श का त्याग करना ऐसा स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है*
*📖 मूलाचार मूलगुणाधिकार की गाथा संख्या ८ की आचार वृत्ति टीका* में देव मनुष्य और तिर्यंच स्त्रियों से विरक्त रहना एवं स्त्रियों के स्पर्श का त्याग करना ये सब ब्रह्मचर्य महाव्रत में आया है
*📖 भगवती आराधना गाथा संख्या ८७३ की टीका* में स्त्रियों के शरीर से स्पर्श या उनके शरीर से सम्बद्ध वस्तुओं का स्पर्श भी अब्रह्म का प्रतीक माना है तब क्या स्त्रियाँ पञ्च परमेष्ठियों को स्पर्श कर सकती हैं ❓
*📖 कर्त्तिकेयानुप्रेक्ष गाथा संख्या ४०२* में भी स्त्री की अपेक्षा शील के १८००० भेदों की चर्चा आती है जिसकी टीका में लिखा है स्त्रिमात्र का चाहे वह देवांगना हो या मानुषी हो अथवा पशुयोनि हो संसर्ग जो छोड़ता है, उनके बीच में उठता बैठता नहीं है तथा उनके रूप को नहीं देखता उनका मन वचन काय कृत कारित अनुमोदना से ९ प्रकार का ब्रह्मचर्य होता है
*👉🏼 सोचो जो स्त्रियाँ साधुओं अथवा प्रतिमाओं को छूती हैं वो उनके ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष लगाकर कितना पाप कमा लेती हैं❗*
*👉🏼 ये भी विचारणीय तथ्य है की स्त्री द्वारा भगवान के अभिषेक को जो आगम सम्मत मानते हैं और वही स्त्रियाँ भगवान को छूती हैं, चन्दन लेपन करती हैं तथा अभिषेक के बाद कपड़े से भगवान का प्रक्षाल (सभी अंगों को पोछना) करती हैं तब ये ब्रह्मचर्य महाव्रत की अपेक्षा और १८००० शीलों की अपेक्षा भगवान को छूकर कितना पाप कमा रही हैं❗*
*👉🏼 सोचे जिस स्त्री के संसर्ग को छोड़ने को कहा है क्या स्त्रियाँ ऐसे पञ्च परमेष्ठी को छूकर उनके ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष नहीं लगा रही ❓*
*➡विगत कुछ वर्षों से समाज में व्यभिचार के मामले काफी बढ़ने लगे हैं यह भी एक बड़ा कारण है कि महिलाओं को दूर से ही साधुओं को नमस्कार आदि करना चाहिए अन्यथा ऐसे बढ़ते मामलों से समाज की और साधुओं की ही बदनामी होती है।*
*➡सलग्न मूलाचार की गाथा संख्या ८ एवं १९५ की फ़ोटो अवश्य देखें*
*➡सलग्न वर्तमान के एक सुप्रसिद्ध आर्षमार्ग के आचार्य की महिलाओं द्वारा किया गया पाद प्रक्षालन की फ़ोटो भी देखें और सोचे कि क्या उपरोक्त आगम प्रमाण के अनुसार यह उचित है या नहीं❗*



