वर्ण किसे कहते हैं?
उन छोटी छोटी सी ध्वनियों को वर्ण कहते हैं जिसके फिर टुकड़े ना किये जा सके वर्ण कहलाते हैं। स्वर और व्यंजन के भेद से वर्ण दो प्रकार के होते हैं।स्वर 13 एवं व्यंजन 33 होते हैं।
जो हृस्व दीर्घ प्लुत के भेद से स्वर तीन प्रकार के एवम स्पर्श अन्तस्थ और उष्म के भेद से व्यंजन भी तीन प्रकार के होते हैं।
वर्णों के उच्चारण स्थान
मुख के वे भाग जिनका प्रयोग वर्णों के उच्चारण हेतु किया जाता है अथवा वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा मुख के अंदर के जिन भागों का स्पर्श करती है या वायु मुख के अंदर के जिन भागों से टकराकर बाहर निकलती है वे ही भाग वर्णों के उच्चारण स्थान कहलाते हैं। वर्णों के उच्चारण स्थान 9 होते हैं - वे इस प्रकार हैं कंठ, तालु, मूर्धा, दंत, ओष्ठ,नासिका, कंठतालु,कंठोष्ठ दंतोष्ठ ।
स्वर
स्वयं राज्यन्ते इति स्वराः ।
जिनका उच्चारण करने के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं नहीं ली जाती है स्वर कहलाते हैं।ये 13 होते हैं।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ए ऐ ओ औ
व्यंजन
जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है व्यंजन कहलाते हैं। ये 33 होते हैं। ये पांच वर्गों में विभाजित होते हैं।
कु चु टु तु पु ,य र् ल व -अन्तस्थ, श ष स् ह -उष्म
उच्चारण स्थानस्य सूत्राणि
अकुहवीसर्जनीयानां कंठ:
इचुयशानां तालु:
ऋतुरसाणांमूर्धा
लृतुलसानां दन्त:
उपूपध्मानीयानामौष्ठौ
ञमङणनानां नासिका च
एदैतो:कण्ठ तालु:
ओदौतो कण्ठोष्ठम्
वकारस्य दन्तोष्ठम्
ये उच्चारण स्थान हैं।इनका विचार करके ही शुद्ध उच्चारण करना चाहिए।
उन छोटी छोटी सी ध्वनियों को वर्ण कहते हैं जिसके फिर टुकड़े ना किये जा सके वर्ण कहलाते हैं। स्वर और व्यंजन के भेद से वर्ण दो प्रकार के होते हैं।स्वर 13 एवं व्यंजन 33 होते हैं।
जो हृस्व दीर्घ प्लुत के भेद से स्वर तीन प्रकार के एवम स्पर्श अन्तस्थ और उष्म के भेद से व्यंजन भी तीन प्रकार के होते हैं।
वर्णों के उच्चारण स्थान
मुख के वे भाग जिनका प्रयोग वर्णों के उच्चारण हेतु किया जाता है अथवा वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा मुख के अंदर के जिन भागों का स्पर्श करती है या वायु मुख के अंदर के जिन भागों से टकराकर बाहर निकलती है वे ही भाग वर्णों के उच्चारण स्थान कहलाते हैं। वर्णों के उच्चारण स्थान 9 होते हैं - वे इस प्रकार हैं कंठ, तालु, मूर्धा, दंत, ओष्ठ,नासिका, कंठतालु,कंठोष्ठ दंतोष्ठ ।
स्वर
स्वयं राज्यन्ते इति स्वराः ।
जिनका उच्चारण करने के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं नहीं ली जाती है स्वर कहलाते हैं।ये 13 होते हैं।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ ए ऐ ओ औ
व्यंजन
जिन वर्णों के उच्चारण में स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है व्यंजन कहलाते हैं। ये 33 होते हैं। ये पांच वर्गों में विभाजित होते हैं।
कु चु टु तु पु ,य र् ल व -अन्तस्थ, श ष स् ह -उष्म
उच्चारण स्थानस्य सूत्राणि
अकुहवीसर्जनीयानां कंठ:
इचुयशानां तालु:
ऋतुरसाणांमूर्धा
लृतुलसानां दन्त:
उपूपध्मानीयानामौष्ठौ
ञमङणनानां नासिका च
एदैतो:कण्ठ तालु:
ओदौतो कण्ठोष्ठम्
वकारस्य दन्तोष्ठम्
ये उच्चारण स्थान हैं।इनका विचार करके ही शुद्ध उच्चारण करना चाहिए।
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