कौन हैं भगवान ऋषभदेव -?
ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है जो धर्मतीर्थ की प्रवर्तन (आगे बढ़ाएं) करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के मार्ग को बताएं एवम् स्वयं उसी मार्ग पर चलें , वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम दिगम्बर जैन मुनि एवम तीर्थंकर थे।
ऋषभनाथ की प्रतिमा, कुण्डलपुर,एवम् बड़वानी बावनगजा मध्य प्रदेश में स्थापित है
इन्हें २ नामों से जाना जाता है आदिनाथ, ऋषभनाथ, एवम् ऋषभनाथ का अपभ्रंश नाम या हिंदी रूपांतरण नाम वृषभनाथ के नाम से भी जाना जाता है
इनकी शिक्षाएं सत्य अहिंसा अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य थीं
इनके बाद अगले तीर्थंकरअजितनाथ हैं
इनका गृहस्थ जीवन इस प्रकार है
वंश _इक्ष्वाकु
पिता _नाभिराज
माता_महारानी मरूदेवी
पुत्र भरत चक्रवर्ती, बाहुबली और ९९पुत्र
पुत्री ब्राहमी और सुंदरी
जन्म कल्याणक चैत्र कृष्ण ९
जन्म स्थान अयोध्या
मोक्ष माघ कृष्ण चतुर्दशी १४
जोकि इसबार ३ फ़रवरी को होगा इनका मोक्ष स्थान कैलाश पर्वत है
लक्षणरंग स्वर्ण
चिन्ह वृषभ (बैल)
इनकी ऊंचाई५०० धनुष (एक धनुष ४.१/२ हाथ एक हाथ १.१/२ फिट)
इनकी कुल आयु८,४००,००० पूर्व (५९२.७०४ × १०१८ वर्ष)
शासन देवी (यक्षिणी ) चक्रेश्वरी थीं
हमारे पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव हुये।
तीर्थंकर युवराज ऋषभदेव का विवाह यशोमती देवी और सुनन्दा से हुआ। ऋषभदेव के १०१ पुत्र और दो पुत्रियाँ थी।उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े थे एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पडा। दुसरे पुत्र बाहुबली भी एक महान राजा एवं कामदेव पद से बिभूषित थे। इनके आलावा ऋषभदेव के वृषभसेन, अनन्तविजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर आदि ९९ पुत्र तथा ब्राम्ही और सुन्दरी नामक दो पुत्रियां भी हुई, जिनको ऋषभदेव ने सर्वप्रथम युग के आरम्भ में क्रमश: लिपिविद्या (अक्षरविद्या) और अंकविद्या का ज्ञान दिया। बाहुबलीऔर सुंदरी की माता का नाम सुनंदा था। भरत चक्रवर्ती, ब्रह्मी और अन्य ९९ पुत्रों की माता का नाम सुमंगला था। ऋषभदेव भगवान की आयु ८४ लाख पूर्व की थी जिसमें से २० लाख पूर्व कुमार अवस्था में व्यतीत हुआ और ६३ लाख पूर्व राजा की तरह व्यतीत किया
हमारे जैन ग्रंथो के अनुसार लगभग १००० वर्षो तक तप करने के पश्चात ऋषभदेव को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
ऋषभदेव भगवान के समवशरण में निम्नलिखित व्रती थे :
८४ गणधर
२२ हजार केवली १२,७०० मुनि मन:पर्ययज्ञान ज्ञान से विभूषित
९,००० मुनि अवधीज्ञानी ४,७५० श्रुत केवली
२०,६०० ऋद्धि धारी मुनि ३,५०,००० आर्यिका माता जी
३,००,००० श्रावक
भगवान ऋषभदेव का हिन्दू ग्रन्थों में भी वर्णन मिलता है
वैदिक धर्म में भी ॠषभदेव का संस्तवन किया गया है। भागवत में अर्हन् राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है। इसमें भरत आदि १०१ पुत्रों का कथन जैन धर्म की तरह ही किया गया है। अन्त में वे दिगम्बर (नग्न,व्राजक, इज्या,या परिव्राजक) साधु होकर सारे भारत में विहार करने का भी उल्लेख किया गया है। ॠग्वेद में ही कई जगह पर लगभग ११६ श्लोकों के माध्यम से भगवान ऋषभदेव की स्तुति की गई है और भी अन्य प्राचीन वैदिक साहित्य में भी इनका आदर के साथ संस्तवन किया गया है।
हिन्दूपुराण श्रीमद्भागवत के पाँचवें स्कन्ध के अनुसार मनु के पुत्र प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र हुये जिनके पुत्र राजा नाभि (जैन धर्म में नाभिराय नाम से उल्लिखित) थे। राजा नाभि के पुत्र ऋषभदेव हुये जो कि महान प्रतापी सम्राट हुये। भागवतपुराण अनुसार भगवान ऋषभदेव का विवाह इन्द्र की पुत्री जयन्ती से हुआ। इससे इनके सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं गुणवान थे।उनसे छोटे कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इन्द्रस्पृक, विदर्भ और कीकट ये नौ राजकुमार शेष नब्बे भाइयों से बड़े एवं श्रेष्ठ थे। उनसे छोटे कवि, हरि, अन्तरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस और करभाजन ये नौ पुत्र राजकुमार भागवत धर्म का प्रचार करने वाले बड़े भगवद्भक्त थे। इनसे छोटे इक्यासी पुत्र पिता की की आज्ञा का पालन करते हुये पुण्यकर्मों का अनुष्ठान करने से शुद्ध होकर ब्राह्मण हो गये इस प्रकार का वर्णन मिलता है।
भगवान ऋषभदेव जी की एक ८४ फुट की विशाल प्रतिमा भारत में मध्य प्रदेश राज्य के बड़वानी जिले में बावनगजा नामक स्थान पर उपस्थित है। मांगी तुन्गी ( महाराष्ट्र ) में भगवान ऋषभदेव की 108 फुट की विशाल प्रतिमा स्थापित की जा चुकी है।
🙏जय जिनेन्द्र🙏
ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है जो धर्मतीर्थ की प्रवर्तन (आगे बढ़ाएं) करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के मार्ग को बताएं एवम् स्वयं उसी मार्ग पर चलें , वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम दिगम्बर जैन मुनि एवम तीर्थंकर थे।
ऋषभनाथ की प्रतिमा, कुण्डलपुर,एवम् बड़वानी बावनगजा मध्य प्रदेश में स्थापित है
इन्हें २ नामों से जाना जाता है आदिनाथ, ऋषभनाथ, एवम् ऋषभनाथ का अपभ्रंश नाम या हिंदी रूपांतरण नाम वृषभनाथ के नाम से भी जाना जाता है
इनकी शिक्षाएं सत्य अहिंसा अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य थीं
इनके बाद अगले तीर्थंकरअजितनाथ हैं
इनका गृहस्थ जीवन इस प्रकार है
वंश _इक्ष्वाकु
पिता _नाभिराज
माता_महारानी मरूदेवी
पुत्र भरत चक्रवर्ती, बाहुबली और ९९पुत्र
पुत्री ब्राहमी और सुंदरी
जन्म कल्याणक चैत्र कृष्ण ९
जन्म स्थान अयोध्या
मोक्ष माघ कृष्ण चतुर्दशी १४
जोकि इसबार ३ फ़रवरी को होगा इनका मोक्ष स्थान कैलाश पर्वत है
लक्षणरंग स्वर्ण
चिन्ह वृषभ (बैल)
इनकी ऊंचाई५०० धनुष (एक धनुष ४.१/२ हाथ एक हाथ १.१/२ फिट)
इनकी कुल आयु८,४००,००० पूर्व (५९२.७०४ × १०१८ वर्ष)
शासन देवी (यक्षिणी ) चक्रेश्वरी थीं
हमारे पुराणों के अनुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराय के पुत्र ऋषभदेव हुये।
तीर्थंकर युवराज ऋषभदेव का विवाह यशोमती देवी और सुनन्दा से हुआ। ऋषभदेव के १०१ पुत्र और दो पुत्रियाँ थी।उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े थे एवं प्रथम चक्रवर्ती सम्राट हुए जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पडा। दुसरे पुत्र बाहुबली भी एक महान राजा एवं कामदेव पद से बिभूषित थे। इनके आलावा ऋषभदेव के वृषभसेन, अनन्तविजय, अनन्तवीर्य, अच्युत, वीर, वरवीर आदि ९९ पुत्र तथा ब्राम्ही और सुन्दरी नामक दो पुत्रियां भी हुई, जिनको ऋषभदेव ने सर्वप्रथम युग के आरम्भ में क्रमश: लिपिविद्या (अक्षरविद्या) और अंकविद्या का ज्ञान दिया। बाहुबलीऔर सुंदरी की माता का नाम सुनंदा था। भरत चक्रवर्ती, ब्रह्मी और अन्य ९९ पुत्रों की माता का नाम सुमंगला था। ऋषभदेव भगवान की आयु ८४ लाख पूर्व की थी जिसमें से २० लाख पूर्व कुमार अवस्था में व्यतीत हुआ और ६३ लाख पूर्व राजा की तरह व्यतीत किया
हमारे जैन ग्रंथो के अनुसार लगभग १००० वर्षो तक तप करने के पश्चात ऋषभदेव को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
ऋषभदेव भगवान के समवशरण में निम्नलिखित व्रती थे :
८४ गणधर
२२ हजार केवली १२,७०० मुनि मन:पर्ययज्ञान ज्ञान से विभूषित
९,००० मुनि अवधीज्ञानी ४,७५० श्रुत केवली
२०,६०० ऋद्धि धारी मुनि ३,५०,००० आर्यिका माता जी
३,००,००० श्रावक
भगवान ऋषभदेव का हिन्दू ग्रन्थों में भी वर्णन मिलता है
वैदिक धर्म में भी ॠषभदेव का संस्तवन किया गया है। भागवत में अर्हन् राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है। इसमें भरत आदि १०१ पुत्रों का कथन जैन धर्म की तरह ही किया गया है। अन्त में वे दिगम्बर (नग्न,व्राजक, इज्या,या परिव्राजक) साधु होकर सारे भारत में विहार करने का भी उल्लेख किया गया है। ॠग्वेद में ही कई जगह पर लगभग ११६ श्लोकों के माध्यम से भगवान ऋषभदेव की स्तुति की गई है और भी अन्य प्राचीन वैदिक साहित्य में भी इनका आदर के साथ संस्तवन किया गया है।
हिन्दूपुराण श्रीमद्भागवत के पाँचवें स्कन्ध के अनुसार मनु के पुत्र प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र हुये जिनके पुत्र राजा नाभि (जैन धर्म में नाभिराय नाम से उल्लिखित) थे। राजा नाभि के पुत्र ऋषभदेव हुये जो कि महान प्रतापी सम्राट हुये। भागवतपुराण अनुसार भगवान ऋषभदेव का विवाह इन्द्र की पुत्री जयन्ती से हुआ। इससे इनके सौ पुत्र उत्पन्न हुये। उनमें भरत चक्रवर्ती सबसे बड़े एवं गुणवान थे।उनसे छोटे कुशावर्त, इलावर्त, ब्रह्मावर्त, मलय, केतु, भद्रसेन, इन्द्रस्पृक, विदर्भ और कीकट ये नौ राजकुमार शेष नब्बे भाइयों से बड़े एवं श्रेष्ठ थे। उनसे छोटे कवि, हरि, अन्तरिक्ष, प्रबुद्ध, पिप्पलायन, आविर्होत्र, द्रुमिल, चमस और करभाजन ये नौ पुत्र राजकुमार भागवत धर्म का प्रचार करने वाले बड़े भगवद्भक्त थे। इनसे छोटे इक्यासी पुत्र पिता की की आज्ञा का पालन करते हुये पुण्यकर्मों का अनुष्ठान करने से शुद्ध होकर ब्राह्मण हो गये इस प्रकार का वर्णन मिलता है।
भगवान ऋषभदेव जी की एक ८४ फुट की विशाल प्रतिमा भारत में मध्य प्रदेश राज्य के बड़वानी जिले में बावनगजा नामक स्थान पर उपस्थित है। मांगी तुन्गी ( महाराष्ट्र ) में भगवान ऋषभदेव की 108 फुट की विशाल प्रतिमा स्थापित की जा चुकी है।
🙏जय जिनेन्द्र🙏




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